कैसे और क्यों मनाएं निर्जला एकादशी 
एन टी 24 न्यूज़ 
चंडीगढ़ 
प्रत्येक वर्ष भारत
में 24 एकादशियां पड़ती हैं ।
अधिक मास अर्थात मलमास की अवधि में इनकी संख्या 26 हो जाती
हैं । ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है । परंतु
मलमास के कारण इस साल यह एकादशी 23 जून ,शनिवार  को पड़ रही है । वास्तव में यह एकादशी शनिवार की प्रातः 3
बजकर 53 मिनट पर आरंभ हो जाएगी और रविवार की
सुबह 4 बज कर 55 मिनट तक रहेगी ।
 यह व्रत एकादशी के सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक 24 घंटे की अवधि का  माना जाता है l ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की
एकादशी को निर्जल व्रत किया जाता है l सूर्योदय से व्रत का आरम्भ हो जाता है l
इसके अतिरिक्त द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए l इस एकादशी का व्रत करना सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है l निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्ति पाता है l
 जो मनुष्य़ निर्जला एकादशी
का व्रत करता है उनको मृत्यु के समय मानसिक और शारीरिक कष्ट नही होता है l यह एकादशी पांडव एकादशी के नाम से भी जानी जाती है l
इस व्रत को करने के बाद जो व्यक्ति स्नान तप और दान करता है उसे करोडों गायों को
दान करने के समान फल प्राप्त होता है l आज के दिन यह व्रत
बिना जल पिए रखा जाता है, इस लिए इसे निर्जला एकादशी कहा गया
है । इस एकादशी का प्रारंभ    
महाभारत काल के एक संदर्भ से माना गया है जब  सर्वज्ञ वेदव्यास ने
पांडवों को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाले व्रत का संकल्प कराया
तो भीम ने कहा कि आप तो 24 एकादशियों का व्रत रखने का संकलप
करवा रहे हैं, 
मैं तो एक दिन भी भूखा नहीं रह सकता । पितामह ने समस्या का निदान करते हुए कहा कि आप निर्जला नामक एकादशी का व्रत
रखो । इससे समस्त एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होगा । तभी से हिंदू धर्म में
यह व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है । इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी तभी से कहा
जाने लगा । इस दिन मान्यता है कि जो व्यक्ति स्वयं प्यासा रहकर दूसरों को जल
पिलाएगा वह धन्य कहलाएगा । यह व्रत पति-पत्नी, नर नारी कोई भी किसी भी आयु का प्राणी रख
सकता है । इस दिन भगवान विश्णु की आराधना का विशेश महत्व है ।
कैसे
रखें व्रत ?
प्रातः  सूर्योदय
से पूर्व उठें और भगवान विष्णु की मूर्ति  या शालिग्राम को पंचामृत अर्थात
दूध, दही, घी, शहद व शक्कर से स्नान कराएं या चित्र के आगे
ज्योति प्रज्जवलित करके तुलसी एवं फल अर्पित करते हुए आराधना करें । मूर्ति को नए
वस्त्र अर्पित करें । या किसी मंदिर में भगवान विश्णु के दर्शन करें ।
 निर्जल व्रत रखें । ओम् नमो भगवते वासुदेवाय: का जाप करें और जल, वस्त्र, छतरी , घड़ा ,खरबूजा, फल ,शरबत आदि का दान
करना लाभकारी रहता है । या गर्मी से बचने की सामग्री दान करें । अगले दिन जल ग्रहण
करके व्रत का समापन करें । महर्षि वेदव्यास ने भीम को बताया था एकादशी का यह उपवास
निर्जला रहकर करना होता है इसलिये इसे रखना बहुत कठिन होता है । क्योंकि एक तो
इसमें पानी तक पीने की मनाही होती है दूसरा एकादशी के उपवास को द्वादशी के दिन
सूर्योदय के पश्चात खोला जाता है। अतरू इसकी समयावधि भी काफी लंबी हो जाती है । 24
जी को पारण ; व्रत तोड़ने काद्ध समय 13: 49 से 16: 37, पारण
तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय 10:08, एकादशी तिथि प्रारम्भ 23जून 2018
को 03:19 बजे, एकादशी तिथि समाप्त 24जून 2018 को 03 :2 बजे, 
आज
के वर्तमान संदर्भ में निर्जला एकादशी का महत्व एवं उपाय
यह व्रत वर्तमान
व्यवस्था जिसमें आने वाले समय में जल की कमी होने वाली है, उसके आपात काल को सहने का प्रशिक्षण देता
है और आपको कई आपात परिस्थितियों में जल के बिना रहने की क्षमता भी प्रदान करता
है। हमारे सैनिक कई ऐसी आपात स्थिति में 48 डिग्री तापमान
में फंस जाते हैं, यदि उनकी कठोर ट्रनिंग न हो तो वे देश की
रक्षा नहीं कर पाएंगे । इसी लिए यह व्रत हमें किसी भी ऐसी अप्रत्याशित आपात स्थिति
से जूझने का साहस प्रदान करता है। मई जून की गर्मी में ही यह व्रत आपकी सही
परीक्षा लेता है और आपकी शारीरिक क्षमता का मूल्यांकन करता है कि क्या आप कल को
पानी की कमी झेल पाएंगे । आधुनिक युग में गर्मी से स्वयं बचने और दूसरों को भी
बचाने के लिए आप र्प्यावरण को और सुदृढ़ बनाने के लिए निर्जला एकादशी पर सार्वजनिक
स्थानों पर प्याउ लगवाएं, वाटर कूलर की वयवस्था करें,
निर्धनों को खरबूजे, तरबूज जैसे अधिक जल वाले
फल दें। दूध, लस्सी, आईसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक, जूस आदि की सार्वजनिक व्यवस्था पूरी
गर्मी के महीनों तक करें। फल व छायादार वक्ष लगाएं। जहां जनसाधारण को आवश्यकता हो
अपनी क्षमतानुसार या चंदा एकत्रित करके एयर कंडीशनर , पंखे ,कूलर आदि का दान करें ।
यह व्रत हमारे
देश की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है जहां कहा गया है- सर्वे संतु
सुखिना...तथा  सरबत दा भला। विश्व का कल्याण हो प्राणियों में सद्भावना हो ।
समाज का कमजोर वर्ग असहाय न रह जाए, सभी सुखी रहें , निरोगी रहें। एक दूसरे के प्रति
समाज में समर्पण की भावना रहे , एक दूसरे की  सहायता को
तत्पर रहें। सिख समुदाय ऐसी जल की छबीलें कई अवसर पर लगा कर भारतीय दर्शन को आगे
बढ़ाता है और भारत में ही नहीं अपितु विश्व में सरबत दा भला की फिलासफी का
प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे पर्वों को सामूहिक रुप से मनाना आज के संदर्भ में और भी
महत्वपूर्ण एवं समय की मांग हो गया है। आइये सभी भारतवासी इस व्रत को मनाएं और जल
बचाने का प्रयास करें। जल है तो कल है का नारा ही निर्जला एकादशी का संदेश है ।
मदन गुप्ता सपाटू, 
ज्योतिर्विद्, 
चंडीगढ़, 98156 19620

