भक्ति का अर्थ
है स्वयं को समर्पित करना : गोबिन्द सिंह
विनय कुमार
चण्डीगढ़
परमात्मा की पूजा आराधना ही नही बल्कि
स्वयं को समर्पित करना,
वर्तमान सत्गुरू के आदेशों को बिना किसी ‘किन्तु-परन्तु’ के निस्वार्थ भाव
से अपने जीवन में अपनाना तथा हर प्रकार के भ्रम-भुलेखों को त्याग कर संसार में रहते
हुए अपने कर्तव्यों को निभाना ही भक्ति है, ये उद्गार आज यहां
सैक्टर 30 में स्थित सन्त निरंकारी सत्संग भवन में हुए साप्ताहिक सन्त
समागम में हज़ारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए देहली से
आए सन्त निरंकारी मण्डल के प्रधान श्री गोबिन्द्र सिंह जी ने व्यक्त किए । सत्गुरू
की महिमा की चर्चा करते हुए गोबिन्द सिंह ने फरमाया कि पिछले गुरू-पीर-पैगम्बरों ने
अपने सत्गुरू को परमात्मा से उपर का दर्जा दिया है क्योंकि परमात्मा की जानकारी इन्सान
को अपनी बुद्धि या किसी अन्य गुणों से नहीं केवल वर्तमान सत्गुरू की शरण में जा कर
समर्पित होने से ही प्राप्त होती है, तभी तो भक्त कबीर
जी ने कहा है कि गुरू गोबिन्द दोनों खड़े काको लागू पाए बलिहारी गुर आपणे जिस गोबिन्द
दिओ मिलाए । लोगों को भी परमात्मा की भक्ति बारे प्रेरित करते हुए सिंह ने कहा कि इस
धरती के किसी भी कोने में रहने वाला इन्सान चाहे वह किसी भी मज़हब जाति भाषा से सम्पर्क
रखने वाला हो सत्गुरू माता सुदीक्षा सविन्द्र हरदेव जी महाराज की शरण में आकर परमपिता
परमात्मा की जानकारी हासिल करके वास्तविक भक्ति का आनन्द लेकर अपने मानुष जीवन को सफल
बना सकता है । इस अवसर पर यहां के संयोजक श्री नवनीत पाठक ने सिंह जी का सर्वत्र साधसंगत
की ओर से स्वागत किया और उनको समय-समय पर यहां आ कर आशीर्वाद देते रहने का भी अनुरोध
किया ।