*दिनांक - 20 जून 2018* *दिन - बुधवार*,
*विक्रम संवत - 2075*, *शक संवत -1940*, *अयन - उत्तरायण*, *ऋतु - ग्रीष्म*, *मास - ज्येष्ठ* , *पक्ष - शुक्ल*, *तिथि - रात्रि 03:52 तक अष्टमी*, *नक्षत्र - रात्रि 01:19 तक उत्तराफाल्गुनी*, *योग - रात्रि 03:35 तक व्यतिपात*, *राहुकाल - दोपहर 12:40 से 02:19*, *सूर्योदय - 05:58*, *सूर्यास्त - 19:21*, *दिशाशूल - उत्तर दिशा में*,
*व्रत पर्व विवरण - बुधवारी अष्टमी (सूर्योदय
से 21 जून प्रातः 03:52 तक)*, *विशेष - अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता
है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*, *अष्टमी तिथि, रविवार, श्राद्ध
और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध
है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
*दक्षिणायन आरंभ*
➡ *21 जून 2018 गुरुवार को
(पुण्यकाल सूर्योदय से दोपहर 03:38 तक)*
🏻 *उत्तरायण या दक्षिणायान के आरंभ
के दिन किया गया जप-ध्यान व पुण्यकर्म कोटि कोटि गुना अधिक एवं अक्षय होता है |–
पद्म पुराण*
*वर्षा ऋतु*
➡ *21 जून 2018 गुरुवार से
वर्षा ऋतु प्रारंभ ।*,*ग्रीष्म ऋतु में दुर्बल हुआ शरीर
वर्षा ऋतु में धीरे-धीरे बल प्राप्त करने लगता है | आद्र
वातावरण जठराग्नि को मंद करता है | वर्षा ऋतु में
वात-पित्तजनित व जीर्णजन्य रोगों का प्रादुर्भाव होता है | अत:
जठराग्नि प्रदीप्त करनेवाला वात-पित्तशामक आहार लेना चाहिए |*, *हितकर आहार : इस ऋतु में जठराग्नि प्रदीप्त करनेवाले अदरक, लहसुन, नींबू, पुदीना, हरा धनिया, सोंठ, अजवायन,
मेथी, जीरा, हींग,
काली मिर्च, पीपरामूल का प्रयोग करें |
जों, खीरा, लौकी,
गिल्की, पेठा, तोरई,
आम, जामुन, पपीता,
सूरन सेवनीय हैं | श्रावण मास में दूध व हरी
सब्जियाँ न खायें | वर्षा ऋतु में दही पूर्णत: निषिद्ध है |
ताजी छाछ में काली मिर्च,5 सेंधा, जीरा, धनिया, पुदीना डालकर ले
सकते हैं | उपवास और लघु भोजन हितकारी है | रात को देर से भोजन न करें |*, *अहितकर आहार : देर
से पचनेवाले, भारी, तले, तीखे पदार्थ न लें | जलेबी , बिस्कुट,
डबलरोटी आदि मैदे की चीजे , बेकरी की चीजे,
उड़द, अंकुरित अनाज, ठंडे
पेय पदार्थ व आइस्क्रीम के सेवन से बचे | वर्षा ऋतु में दही पूर्णतः निषिध्द है | श्रावण मास
में दूध व हरी सब्जियाँ वर्जित हैं |*, *हितकर विहार :
आश्रमनिर्मित धूप, हवन से वातावरण को शुद्ध व गौ-सेवा फिनायल
या गोमूत्र से घर को साफ करें | तुलसी के पौधे लगायें |
उबटन से स्नान, तेल की मालिश , हल्का व्यायाम, स्वच्छ व
हल्के वस्त्र पहनना हितकारी है | वातावरण में नमी और आर्द्रता के कारण उत्पन्न कीटाणुओं से सुरक्षा हेतु
आश्रम की धूप व हवन से वातावरण को शुद्ध तथा गौ सेवा फिनायल या गोमुत्र से घर को
स्वच्छ रखें | घर के आसपास पानी इकट्ठा न होने दें | मच्छरों से सुरक्षा के लिए घर में
गेंदे के पौधों के गमले अथवा गेंदे के फूल रखें और नीम के पत्ते , गोबर के कंड़े व गूगल आदि का धुआँ करें |*, *अपथ्य
विहार : बारिश में न भींगें | भींगें गीले कपड़े पहनकर न रखें | रात्रि-जागरण, दिन में शयन, खुले में शयन, अति
परिश्रम एवं अति व्यायाम वर्जित है |*