चंडीगढ़
लेखिका : मंजू मल्होत्रा फूल...... समाज में बरसों से पनप रही गलत परंपरा संतान के रूप में नर शिशु की कामना ने आज एक ऐसी अमानवीय समस्या का रूप धारण कर लिया है जो अन्य कई गंभीर समस्याओं की जड़ है। मानव के इस अमानवीय कृत्य के कारण स्त्री पुरुष लिंगानुपात में पिछले कुछ दशकों में भारी गिरावट आई है। गर्भावस्था में लिंग जांच और कन्या भ्रूण की मां के गर्भ में हत्या से महिलाओं की संख्या में दिन-प्रतिदिन गिरावट आ रही है। इसके फलस्वरूप समाज का संतुलन बिगड़ रहा है।प्राचीन समय में भारत में महिलाओं को पुरुष के समान शिक्षा के अधिकार एवं अवसर उपलब्ध थे किंतु विदेशी आक्रमणों खासतौर से मुगलो एवं अन्य कारणों से महिलाओं को शिक्षा प्राप्ति से वंचित किया जाने लगा। शिक्षा के अवसर उपलब्ध नहीं होने पर पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाने लगा तथा महिलाओं को घर तक ही सीमित कर दिया गया। बेटे की कामना में कन्या भ्रूण हत्या नारी को आजीवन मानसिक रूप से प्रताड़ित करती रहती है। अपने वंश को आगे चलाने के लिए एक बेटी को बोझ समझना तथा बेटा पैदा होने पर खुद को धनवान समझना इस प्रकार की संकीर्ण मानसिकता कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध की जड़ है। नारी की पीड़ा, अजन्मे बच्चे की गर्भ में हत्या करने का पाप, उस नन्ही बच्ची का रुदन, क्या कोई भी एहसास हत्यारों के मन को झंझोडता नही होगा। किंतु इस प्रकार की सोच रखने वाले समाज में रहने वाले लोगों के हृदय और सोच में कब परिवर्तन आएगा इस पर प्रश्न चिन्ह बना ही रहता है