प्रख्यात आर्किटेक्ट शिवदत्त शर्मा के जीवन और कार्यों पर आधारित डॉक्यूमेंट्री 14 वर्षों में बनी, 9 नवंबर को चंडीगढ़ में होगा प्रीमियर
चंडीगढ़, राखी: चंडीगढ़ के प्रख्यात आर्किटेक्ट शिवदत्त शर्मा के जीवन और कार्यों पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री का आज यहां शुभारंभ किया गया। यह फिल्म लगभग 14 वर्षों में पूरी हुई है,जिसमें भारत के प्रमुख आर्किटेक्ट्स और विशेषज्ञों के इंटरव्यू शामिल हैं, जो शर्मा के आर्किटेक्चर कार्यों पर चर्चा करते हैं। इस फिल्म का निर्माण शिवानी शर्मा द्वारा और निर्देशन अतुल शर्मा द्वारा किया गया है। इसकी अवधि लगभग 50 मिनट है। फिल्म का प्रीमियर आगामी रविवार, 9 नवंबर को सुबह 11:30 बजे,सेक्टर 10 स्थित म्यूज़ियम एंड आर्ट गैलरी,चंडीगढ़ के ऑडिटोरियम में होगा। यह फिल्म बहुत ही रोचक ढंग से आर्किटेक्ट शर्मा के जीवन और करियर के महत्वपूर्ण पड़ावों को दर्शाती है — जिनमें उनके चंडीगढ़ प्रोजेक्ट्स, आईएसआरओ(इसरो)बेंगलुरु में बतौर चीफ आर्किटेक्ट कार्यकाल,और उनके अब तक के अनुभव शामिल हैं। 94 वर्ष की उम्र में भी सक्रिय और कार्यरत शर्मा का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है। फिल्म आर्किटेक्ट शर्मा के 65 वर्षों के पेशेवर सफर पर एक दिलचस्प दृष्टि प्रस्तुत करती है। विभाजन के कठिन दौर में संसाधनों की कमी के बावजूद, शर्मा ने चंडीगढ़ के कैपिटल प्रोजेक्ट में आर्किटेक्ट्स की टीम में शामिल होकर अपने करियर की शुरुआत की। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने प्रसिद्ध आर्किटेक्ट्स ली कॉर्बुज़िए और पियरे जेनरे के साथ काम किया,विशेषकर म्यूज़ियम एंड आर्ट गैलरी, चंडीगढ़ के प्रोजेक्ट पर। उनकी रचनात्मक प्रतिभा की झलक शुरू से ही दिखी — उनकी थीसिस को जूरी ने आदर्श माना। ली कॉर्बुज़िए के निधन के बाद उनका अधूरा संग्रहालय प्रोजेक्ट शर्मा को सौंपा गया, जो उनकी प्रतिबद्धता और वास्तुकला के प्रति समर्पण का प्रमाण है। ली कॉर्बुज़िए के साथ मिलकर जिस इमारत पर शर्मा ने कार्य किया, वह है म्यूज़ियम एंड आर्ट गैलरी। इसके अलावा चंडीगढ़ में उन्होंने कई महत्वपूर्ण इमारतों का डिजाइन किया, जैसे टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, आईएमटेक, नाइपर, आईटी पार्क स्थित ईडीसी बिल्डिंग, और पीजीआईएमईआर आदि। प्रख्यात पत्रकारों से बातचीत के दौरान आर्किटेक्ट शिवदत्त शर्मा ने कहा कि मुझे यह सौभाग्य मिला कि मैं चंडीगढ़ में रहा, जहां मैंने जिया, काम किया, सीखा और वास्तुकला की बुनियाद को समझा। ली कॉर्बुज़िए — जो एक आर्किटेक्ट, विचारक, लेखक और चित्रकार थे — उनके व्यक्तित्व को करीब से जानना मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव रहा। यह एक ऐसा संस्थान था जहाँ बिना किसी भेदभाव के वास्तुकला और नगर नियोजन सीखा जा सकता था। मेरे मन में पहले से कोई बनी हुई सोच नहीं थी, इसलिए मुझे वास्तुकला को नए ढंग से समझने और सीखने का मौका मिला। मैं भले ही ली कॉर्बुज़िए की गहराई तक न पहुँच सका, लेकिन उनके कामों से मैंने वर्षों तक बहुत कुछ सीखा, जो मेरे लिए बहुत कीमती अनुभव रहा।

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