नई जिंदगी की उत्पत्ति का सफल साधन है आईवीएफ विधि: माहिर
आईवीएफ ने औलाद को तरसते जोड़ों की जिंदगी में जगाई नई
उम्मीद: डॉ. पूजा मेहता
लैब की गुणवत्ता है आईवीएफ की सफलता का पहला कदम: डॉ.
परमिंदर कौर
एन टी 24 न्यूज़
पूजा गुप्ता
चंडीगढ़
बांझपन के इलाज के लिए अस्तित्व में आई नई तकनीकी और
प्रक्रियाओं के विकास के साथ जहां औलाद के लिए तरस रहे जोड़ों के लिए नई संभावनाएं
पैदा हुई हैं वहीं डॉक्टरी पेशे के साथ जुड़े और आम लोगों की नई धारणाएं और
चिन्ताएं भी बढ़ी है। यह बात मोहाली स्थित फोर्टिस ब्लूम आईवीएफ सेंटर के विभाग के
मुख्य डॉक्टर पूजा मेहता ने आज पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए कही। उन्होंने
कहा कि इस विधि के साथ जनन शक्ति में लामिसाल प्राप्तियां होती है, पर
कईं बार किसी किस्म की मामूली सी भी लापरवाही से ऐसी प्रक्रिया असफल हो जाती है।
जिसके पिछे कई कारण छिपे हुए होते हैं। उन्होंने कहा कि औरतों में गंभीर
पालीसिस्टिक अंडकोश सिंड्रोम (पीसीओएस) व ब्लॉक फैलोपियन ट्यूब बांझपन के दो
प्रमुख कारण हैं। उन्होंने कहा कि शुक्राणुओं की कमी ही पुरुषों की शक्ति को
प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि पिछले आईवीएफ शडियुल की पूरी जानकारी एकत्रित
करके ही अगला आईवीएफ सफलता के साथ सिरे चढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि
फोर्टिस ब्लूम आईवीएफ सेंटर में ऐसी सभी सहूलियतें उपलब्ध हैं। जिस कारण कम शडियुल
में भी जोड़ों को सफल गर्भ धारण हो जाता है। सेंटर की सीनियर सलाहकार डॉ. परमिंदर
कौर ने कहा कि इस विधि की सफलता के लिए सब से ज्यादा महत्वपूर्ण लैब की गुणवत्ता
है। जिसमें अंडे ही प्राप्ती के बाद अगला कदम प्रजनन है। उन्होंने कहा कि जनन
शक्ति के इलाज में अनेकों ऐसे कारक होते हैं जो इस इलाज प्रणाली को ज्यादा
प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि इस दौरान थोड़ी सी लापरवाही गलत प्रभाव डाल
सकती है। सेंटर की सीनियर सलाहकार डॉ. सुनीता चंद्रा ने कहा कि आईवीएफ विधि नई
जिंदगी बनाने की एक सफल विधि है। उन्होंने कहा कि 35 साल से
कम उम्र वर्ग में 40 से 50 फीसदी तक
सफल रहते हैं। उन्होंने कहा कि भ्रूण के विकास के लिए अच्छी प्रयोगशाला होनी
चाहिए। जहां अच्छे इन्क्यूबेटर, लैमिनर फ्लो व अच्छे कल्चर
मीडिया जैसी चीजें भी जरूरी हैं।
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