* दिनांक
- 17 अगस्त 2018*, * दिन – शुक्रवार *, * विक्रम संवत – 2075 *, * शक संवत -1940
*, * अयन – दक्षिणायन *,
* ऋतु – वर्षा *,
* मास – श्रावण *,
* पक्ष – शुक्ल *,
* तिथि - 18/8 रात्रि 01:00 तक सप्तमी *, * नक्षत्र - शाम 04:11 तक स्वाती *, * योग - शाम 03:34 तक शुक्ल *, * राहुकाल - सुबह 10:54 से 12:30 *, * सूर्योदय - 06:18
*, *सूर्यास्त - 19:06* , *दिशाशूल
- पश्चिम दिशा में *, * व्रत पर्व विवरण - संत तुलसीदास
जयंती, विष्णुपदी संक्रांति (पुण्यकाल सुबह 06:52 से दोपहर 01:16 तक) *, * विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से
रोग बढ़ता है तथा शरीर का नाश होता
है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
*, * चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग
न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।(स्कन्द पुराण) *, * चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है ।*,
* श्रावण शनिवार *
* बहुत लोगों को श्रावण शनिवार का पूरे वर्ष इंतज़ार रहता है। *,
* स्कन्दपुराण के अनुसार
*
* " श्रावणे मासि देवानां त्रयानां पूजनं शनौ। नृसिंहस्य शनैश्चव्य
अञ्जनीनन्दनस्य च ।।" *, * श्रावण मास में शनिवार के दिन नृसिंह, शनि तथा
अंजनीपुत्र हनुमान इन तीनों देवताओं का पूजन करना चाहिए। *,
* शिवपुराण के अनुसार*
* अपमृत्युहरे मंदे
रुद्राद्रींश्च यजेद्बुधः ॥ *, * तिलहोमेन दानेन तिलान्नेन च भोजयेत् ॥
(शिवपुराण, विध्येश्वर संहिता) *, * शनैश्चर अल्पमृत्यु का निवारण करने वाला है,
उस दिन बुद्धिमान पुरुष रुद्र आदि की पूजा करे। तिल के होम के , दान से देवताओं को
संतुष्ट करके ब्राह्मणों को तिलमिश्रित अन्न भोजन कराएं। *,* स्कन्दपुराण के
अनुसार श्रावण शनिवार को हनुमान पूजा : *, 1. “ शनिवारे श्रावणे च अभिषेकं समाचरेत, रुद्रमंत्रेण तैलेन हनुमत्प्रीणनाय
च। तैलमिश्रितसिन्दूरलेपमं तस्य समर्पयेत” रुद्रमंत्र के द्वारा तेल से हनुमान जी
का अभिषेक करना चाहिए। तेल में मिश्रित सिन्दूर का लेप उन्हें समर्पित करना चाहिए।
*, * 2. जपाकुसुम, आक,
मंदारपुष्प की मालाओं से , नैवेद्य से उनकी पूजा करनी चाहिए। *,* 3. “जपेद्द्वादश नामानि हनुमत्प्रीतये बुधः” हनुमान जी के 12 नामों का जप
करना चाहिए। *,*"हनुमानञ्जनी सूनुर्वायुपुत्रो महाबल:। रामेष्ट: फाल्गुनसख:
पिङ्गाक्षोमितविक्रम:।। *,* उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:। * * लक्ष्मणप्राणदाता
च दशग्रीवस्य दर्पहा।। " *, * जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर इन बारहनामों को पढ़ता
है, उसका अमंगल नहीं होता और उसे सभी सम्पदा सुलभ हो जाती है। *, *
4. हनुमान जी के मंदिर में हनुमत्कवच का
पाठ करना चाहिए।*,*“ श्रावणे मंदवारे तु एवमाराध्य वायुजं। वज्रतुल्यशरीरः
स्यादरोगो बलवान्नरः।। *, * वेगवान्कार्यकरणे बुद्धिवैभवभूषितः। शत्रु:
संक्षयमाप्नोति मित्रवृद्धि: प्रजायते।। *, * वीर्यवान्कीर्तिमांश्चैव
प्रसादादंञ्जनीजने। ” *,* इस प्रकार श्रावण में शनिवार के दिन वायुपुत्र हनुमानजी
की आराधना करके मनुष्य वज्रतुल्य शरीर वाला, निरोग और बलवान हो जाता है।
अंजनीपुत्र की कृपा से वह कार्य करने में वेगवान, तथा बुद्धि वैभव से युक्त हो
जाता है, उसके शत्रु नष्ट हो जाते हैं, मित्रों की वृद्धि होती है और वह वीर्यवान
तथा कीर्तिमान हो जाता है। *
* स्कन्दपुराण के अनुसार
श्रावण शनिवार को शनि पूजा:*
* शनि की प्रसन्नता
के लिए एक लंगड़े ब्राह्मण और उसके अभाव में किसी ब्राह्मण के शरीर में तिल का तेल
लगाकर उसे उष्ण जल से स्नान कराना चाहिए और श्रद्धायुक्त होकर खिचड़ी उसे खिलाना
चाहिए। तत्पश्च्यात तेल, लोहा, काला तिल, काला उडद, काला कंबल, प्रदान करना चाहिए।
इसके बाद व्रती यह कहे कि मैंने यह सब शनि की प्रसन्नता के लिए किया है, शनिदेव
मुझपर प्रसन्न हों। तदनन्तर तिल के तेल से शनि का अभिषेक कराना चाहिए। उनके पूजन
मेजन तिल तथा उड़द के अक्षत प्रशस्त माने गए हैं। *, *उसके बाद शनि का ध्यान करें: *,
शनैश्चरः कृष्णवर्णो मन्दः काश्यपगोत्रजः। *, सौराष्ट्रदेशसम्भूतः सूर्यपुत्रो
वरप्रदः। दण्डाकृतिर्मण्डले स्यादिन्द्रनीलसमद्युतिः। *, बाणबाणासनधरः
शूलधृग्गृध्रवाहनः। यमाधिदैवतश्चैव ब्रह्मप्रत्यधिदैवतः। *, कस्तूर्यगुरुगन्ध:
स्यात्तथा गुग्गुलुधूपकः। कृसरान्नप्रियश्चैव विधिरस्य प्रकीर्तितः। *, * पूजा में
कृष्ण वस्तु (काली वस्तु) का दान करना चाहिये । ब्राह्मण को काले रंग के दो वस्त्र
देने चाहिए और काले बछड़े सहित काली गौ प्रदान करनी चाहिए । *
* शनि पूजन में वैदिक
मंत्र: *
* ॐ शन्नो देवीरभिष्टय
आपो भवन्तु पीतये। *, शंयोरभिस्र वन्तु न:। ॐ शनैश्चराय नम:। *, * भगवान् शिव,
शनिदेव के गुरु हैं। शिव ने ही शनि को न्यायाधीश का पद सौंपा था जिसके फलस्वरूप
शनि देव मनुष्य/देव/पशु सभी को कर्मों के अनुसार फल देते हैं। इसलिए श्रावण के
महीने में जो भी भगवान् शिव के साथ साथ शनि की उपासना करता है उसको शनि के शुभ फल
प्राप्त होते हैं। भगवान् शिव के अवतार पिप्पलाद, भैरव तथा रुद्रावतार हनुमान जी
की पूजा भी शनि के प्रकोप से रक्षा करती है । *
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