निरंकारी सन्त समागम में
भक्तों ने सद्भावपूर्ण एकत्व की अलौकिक शक्ति
का किया अनुभव
एन टी 24 न्यूज़
समालखा
निरंकारी
आध्यात्मिक स्थल,
जी.टी.रोड, समालखा में चल रहा 71वाँ
वार्षिक निरंकारी संत समागम सद्भावपूर्ण एकत्व का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करते हुए
मिशन का संदेश चारों
ओर
प्रसारित कर रहा है | यह जानकारी चंडीगढ़ जोन के जोनल इंचार्ज ने दी । संत
निरंकारी मिशन की आध्यात्मिक प्रमुख सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने संत के
जीवन की व्याख्या करते हुए कहा कि संत हमेशा जीवन के हर क्षेत्र में कृतज्ञता का
भाव धारण करते हैं | मानवीय मूल्यों के महत्व पर बल देकर सद्गुरु
माता जी ने कहा कि इनका प्रयोग एकत्व के पुल बनाने में हो न कि मानव को मानव से
दूर करने के लिए दीवारें बनाने में| और यह ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने से ही सम्भव
है | मिशन
के पूर्व गुरुओं ने सदैव मानव-मात्र के प्रति निष्काम प्रेम की सिखलाई दी है,
इसे अपने जीवन में अपनाते हुए भक्तों ने निष्काम भाव तथा दृढ़ता से
मानवता के प्रति लगातार योगदान देते रहने की प्रेरणा सद्गुरु माता जी ने दी | सद्गुरु
माता जी ने याद दिलाया कि बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने पूरे विश्व में
सद्भावपूर्ण एकत्व का सपना देखा था | बाबा हरदेव सिंह जी के संदेश को दोहराते हुए
सद्गुरु माता जी ने कहा कि नकारात्मकता को नकारते हुए हम एक दूसरे के करीब आयें और
आपसी मतभेद जितनी जल्दी हो सके दूर करें | आपने कहा कि एक दूसरे के बारे में बात करने
के बजाए हम एक दूसरे के साथ बात करें तथा अवगुणों के बजाय गुणों के ग्राहक बनें | सद्गुरु
माताजी ने बताया कि पहले जैसी भावनायें और भक्तों के अडोल विश्वास का वातावरण
चहुँओर देखने को मिले | आपने कहा कि माता सविंदर जी ने कंधे से कंधा
मिलाकर एक दूसरे के साथ अपनेपन और सत्कार के भाव से हमें आगे बढ़ने की शिक्षायें
दी हैं |
सद्गुरु माता जी ने
दूर देशों से आई कायरोप्रेटिक डाक्टरों की टीम का विशेष उल्लेख किया जो समागम में
पधारे श्रद्धालुओं की निष्काम भाव से सेवा कर रहे हैं | आपने
कहा कि ब्रह्मज्ञान द्वारा परमसत्ता परमात्मा के साथ जुडे हुए सज्जन हमेशा संतुलित
एवं आनंदित जीवन जीते हैं | सदगुरु माता जी ने भक्तों का आह्वान किया कि सभी ईश्वर में पूर्ण आस्था रखते हुए अपने साथी भक्तों के साथ आदरपूर्ण
व्यवहार करते रहें| समागम के दौरान भक्तों ने “माँ सविंदर – एक रोशन सफर” इस
विषय पर आधारित गीत, व्याख्यान, कविताओं
के द्वारा अपने भाव पंजाबी, हिंदी, तेलुगू,
मल्यालम, मराठी, अंग्रेजी,
मुलतानी, छत्तीसगढ़ी, संस्कृत,
सिंधी, पहाड़ी, बंजारा,
राजस्थानी, भोजपुरी, बंगाली
आदि भाषाओं का सहारा लेते हुए व्यक्त किए |
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