अपने जीवन में तीन सूत्र सत्संग ,सेवा, सुमिरन अपनाएं : पंडित ईश्वर चंद्र शास्त्री
एन टी 24 न्यूज़
विनय कुमार
चण्डीगढ़
मनुष्य का शरीर हमें बार-बार नहीं मिलता। यह तो हमारे पुण्य
कर्मों का फल है कि भगवान ने कृपा करके हमें मनुष्य शरीर दिया 84 करोड़
योनियों में केवल मनुष्य ही है जो कर्म कर सकता है। बाकी सब योनियां तो केवल भोग
योनि है, वे केवल भोग भोगने के लिए ही है। ये ज्ञान आज श्री
खेड़ा शिव मंदिर सेक्टर 28 में आयोजित की जा रही शिव
महापुराण कथा में कथाव्यास पंडित ईश्वर चंद्र शास्त्री ने दिया । उन्होंने आगे कहा
कि मनुष्य शरीर पाकर इसका लाभ लें और इस शरीर से सत्कर्म करें, इसी में मनुष्य शरीर की सार्थकता है। जो व्यक्ति अपना कल्याण चाहता है
उसको चाहिए कि वह अपने जीवन में तीन सूत्रों को अपनाएं। इससे वह अपना भी कल्याण कर
लेता है और दूसरों का भी कल्याण करता है। यह तीन सूत्र हैं- सत्संग, सेवा और सुमिरन । सत्संग -अच्छे लोगों का संग करना चाहिए व उनसे अच्छे
कर्म करने की प्रेरणा लेनी चाहिए । सेवा - स्वार्थ का परित्याग करके तन मन धन से परहित के लिए कर्म
करना चाहिए एवं समाज की व राष्ट्र की सेवा करनी चाहिए । सुमिरन- जिसे हम नामजप भी कहते हैं सुमिरन अवश्य करना चाहिए ।भगवान
श्री कृष्ण ने गीता जी में अर्जुन के माध्यम से हम सबको कहा "मामनुस्मर
युद्ध्य च "हे अर्जुन मेरा स्मरण करो और युद्ध करो अर्थात कर्म करो। शिव
पुराण में भी व्यास जी ने यही बात कही है कि मन से भगवान का सुमिरन करना चाहिए । कथा
का समय प्रतिदिन सायंकालीन वेला में 6:00 से 7:00 बजे तक रखा गया है ।
No comments:
Post a Comment