प्रोस्टेट और मधुमेह की समस्याओं पर कैम्प का आयोजन
एन टी 24 न्यूज़
विनय कुमार शर्मा
पंचकुला
हरियाणा सरकार रिटाइर्ड
ऑफि़सर वेलफेयर एसोसिएशन,पंचकुला ने ओजस सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, पंचकूला के सहयोग से यहां सेक्टर 8 स्थित डॉ सुरेश सिंगला क्लिनिक हाउस में प्रोस्टेट और मधुमेह की समस्याओं
पर एक कैम्प का आयोजन किया। कैम्प में 80 मरीजों की जांच ओजस डॉक्टरों की एक टीम ने की, जिसमें डॉ अभय
गुप्ता , कंसल्टेंट यूरोलॉजी व डॉ केवीएस हरि , मधुमेह विशेषज्ञ शामिल थे। एसोसिएशन के अध्यक्ष रविंद्र शर्मा भी इस मौके
पर उपस्थित मौजूद थे इस मौके पर बोलते हुए डॉ अभय
ने कहा कि प्रोस्टेट कैंसर पश्चिमी देशों में सर्वाधिक पहचाने जाने वाले कैसर में
से एक है । लेकिन भारत में इसकी पहचान में अक्सर देरी हो जाती है क्योंकि रोगी
चिकित्सक के पास तभी जाते हैं जब इसके लक्षण प्रकट हो जाते हैं। 10 में से 9 मामलों में जल्दी पता लगने पर
इलाज से लंबे समय तक के लिए बीमारी से निजात मिल सकती है। लेकिन शीघ्र पहचान के
लिए बीमारी के बारे में और उसकी स्क्रीनिंग के तौर-तरीकों के बारे में जागरूकता
काफी महत्वपूर्ण है। जीवन शैली में बदलाव आने और लोगों
की औसत उम्र में वृद्धि होने के साथ भारत में प्रोस्टेट कैंसर की दर में भी तेजी
से वृद्धि हो रही है। लेकिन इस प्रवृत्ति के प्रति जागरूकता के स्तर में इस दर से
वृद्धि नहीं हुई है। पुरुषों में करीब 70 प्रतिशत
प्रोस्टेट कैंसर 65 वर्ष की आयु से अधिक उम्र के
पुरुषों में पहचान की जा रही है। प्रोस्टेट कैंसर भारतीय पुरुषों में दूसरा सबसे
आम कैंसर है, पहला नंबर फेफड़ों के कैंसर का है। यह मौत
का छठा सबसे आम कारण है। डॉ अभय ने बतायां , हमने हृदय रोगों और मधुमेह पर जागरूकता के बारे काफी कुछ सुना है,
लेकिन प्रोस्टेट कैंसर के बारे में अधिक बात नहीं की गयी है।
भारतीयों में कैसर के प्रारंभिक लक्षणों की उपेक्षा करने या गलत समझने की
प्रवृत्ति होती है, जिसके कारण इसकी पहचान और इलाज में
देरी हो जाती है और दवाइयां का प्रभाव कम हो जाता है। यदि 65 साल से अधिक उम्र के किसी पुरुष को बार बार विशेष रूप से रात में बार बार
पेशाब करने की जरूरत महसूस हो, मूत्र धारा कमजोर या
बाधित हो और मूत्र या वीर्य में खून हाता होए तो इन लक्षणों को गंभीरता से लेने की
जरूरत है। इन लक्षणों को प्रोस्टेट कैंसर के सबसे प्रमुख संकेत के रूप में माने
जाने के बावजूद इन लक्षणों की अक्सर अनदेखी की जाती है और बुढ़ापे को दोषी ठहराया
जाता है।
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