सर्जिकल तकनीक
कार्डियो-वैस्कुलर एसो वार्षिक सम्मेलन में प्रस्तुत
एन टी 24 न्यूज़
विनय कुमार
मोहाली
इंडियन
एसोसिएशन ऑफ कार्डियो वैस्कुलर एंड थोरैसिक सर्जनों के अहमदाबाद में 66वें वार्षिक सम्मेलन में
आईवी हॉस्पिटल,
मोहाली के
डॉ हरिंदर सिंह बेदी द्वारा विकसित सर्जिकल तकनीक को प्रख्यात राष्ट्रीय व
अंतर्राष्ट्रीय सर्जनों के सामने प्रस्तुत किया गया । तकनीक को मंजूरी के बाद बेदी
-इन्टर्नल मेमरी ऑर्टरी (आईएमए) का नाम दिया गया है। इस नई तकनीक के बारे में
जानकारी देते हुए,
डॉ बेदी
आईवी में डायरेक्टर-कार्डियो वैस्कुलर एंडोवैस्कुलर एंड थोरैसिस साइंसेज ने
कहा कि दक्षिण एशिया में टीबी और फेफड़ों के कैंसर की घटनाएं काफी अधिक हैं।
फेफड़ों के कैंसर के साथ-साथ फेफड़ों संबंधी टीबी के उन्नत मामलों का शुरुआत में
इलाज आवश्यक है। डॉ
बेदी, जो एसोसिएशन ऑफ
नॉर्थ ज़ोन कार्डियो थोरैसिक एंड वैस्कुलर सर्जन के संस्थापक अध्यक्ष और
संरक्षक भी हैं,
ने आगे कहा
कि फेफड़ों के कैंसर और टीबी के लिए सर्जरी के दौरान फेफड़े के रोगग्रस्त हिस्से
को हटाने की आवश्यकता हो सकती है। इसे लोबेक्टोमी या न्यूमोनेक्टॉमी कहा जाता है।
फेफड़ों के हिस्से को हटाने के बाद एयरवे ट्यूब (ब्रोन्कस)को रिपेअर करना पड़ता
है। ऐसा
करने के कई तरीके हैं,
लेकिन
रिसाव की जटिलता के साथ एक संभावित घातक ब्रांको- प्लूरल फिस्टुला (बीपीएफ) के
फ़ॉर्मेशन का इलाज करना बहुत मुश्किल है। लंग्स रीसेक्शॅन की सर्जरी के 5-10 प्रतिशत मामले बीपीएफ
के गठन से जटिल हो सकते हैं, जो
एक संभावित घातक स्थिति है। इस
जटिलता से बचने के लिए,
डॉ बेदी ने
इस तकनीक को तैयार किया जिसमें उन्होंने इन्टर्नल मेमरी ऑर्टरी का उपयोग किया जो
बाईपास सर्जरी में इस्तेमाल की जाती है व जो लंग्स रीसेक्शॅन के बाद शेष
ब्रोन्कियल स्टंप को कवर करने के लिए वेस्क्यलर फ्लैप प्रदान करती है । उन्होंने आगे बताया कि
आईएमए ब्रोन्कियल स्टंप को एक उत्कृष्ट वेस्क्यलर कवर देता है और ब्रांको- प्लूरल
फिस्टुला के गठन को रोकने में मदद करता है। मैं इस तकनीक की लंग्स
रीसेक्शॅन के सभी मामलों में उपयोग करने की सलाह देता हूं क्योंकि इसके उपयोग से
कोई साइड एफेक्ट नहीं होता है। यह तकनीक बिना किसी अतिरिक्त लागत के फेफड़ों की
सर्जरी के बाद बीपीएफ की खतरनाक जटिलता को रोकती है व किसी विशेष उपकरण की
भी आवश्यकता नहीं पड़ती है।
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