Tuesday, 8 January 2019

NT24 News : 13 जनवरी रविवार को मनाएं लोहड़ी..............


13 जनवरी रविवार  को मनाएं लोहड़ी
एन टी 24 न्यूज़
विनय कुमार / मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद, 098156 19620
इस बार लोहड़ी का पर्व गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाशोत्सव तथा रविवार के कारण और भी विशेष है । लोहड़ी  परंपरागत रूप से रबी फसलों की फसल से जुड़ा हुआ है और यह किसान परिवारों में सबसे बड़ा उत्सव भी है । पंजाबी किसान लोहड़ी के बाद भी वित्तीय नए साल के रूप में देखते हैं । कुछ का मानना है कि लोहड़ी ने अपना नाम लिया है .कबीर की पत्नी लोई ग्रामीण पंजाब में लोहड़ी लोही है । मुख्यतः  पंजाब का पर्व होने से इसके नाम के पीछे कई तर्क दिए जाते हैं। ल का अर्थ लकड़ी है, ओह का अर्थ गोहा यानी उपले, और ड़ी का मतलब रेवड़ी । तीनों अर्थों को मिला कर लोहड़ी बना है । 
अग्नि प्रज्जवलन का  मुहूर्तरविवार  की सायंकाल 6 बजे  लकड़ियां, समिधा, रेवड़ियां, तिल आदि सहित अग्नि प्रदीप्त करके अग्नि पूजन के रुप में लोहड़ी का पर्व मनाएं  रात्रि 11 बजकर 42 मिनट तक । 
संपूर्ण भारत में लोहड़ी का पर्व धार्मिक आस्था, ऋतु परिवर्तन, कृशि उत्पादन, सामाजिक औचित्य से  जुड़ा है। पंजाब में यह कृशि में रबी फसल से संबंधित है, मौसम परिवर्तन का सूचक तथा आपसी सौहार्द्र का परिचायक है । सायंकाल लोहड़ी जलाने का अर्थ है कि अगले दिन सूर्य का मकर राषि में प्रवेष पर उसका स्वागत करना। सामूहिक रुप से आग जलाकर सर्दी भगाना और मूंगफली , तिल, गज्जक , रेवड़ी खाकर षरीर को सर्दी के मौसम में अधिक समर्थ बनाना ही लोहड़ी मनाने का उद्देश्य है। आधुनिक समाज में लोहड़ी उन परिवारों को सड़क पर आने को मजबूर करती है जिनके दर्षन पूरे वर्श नहीं होते । रेवड़ी मूंगफली का आदान प्रदान किया जाता है। इस तरह सामाजिक मेल जोल में इस त्योहार का महत्वपूर्ण योगदान है । इसके अलावा कृशक समाज में  नव वर्श भी आरंभ हो रहा है । परिवार में गत वर्श नए षिषु के आगमन या विवाह के बाद पहली लोहड़ी पर जष्न मनाने का भी यह अवसर है। दुल्ला भटटी की सांस्कृतिक धरोहर को संजो रखने का मौका है।  बढ़ते हुए अष्लील गीतों  के युग में सुन्दरिए मुंदरिए हो  जैसा लोक गीत सुनना बचपन की यादें ताजा करने का समय है । आयुर्वेद के दृश्टिकोण से  जब तिल युक्त आग जलती है, वातावरण में बहुत सा संक्रमण समाप्त हो जाता है और परिक्रमा करने से षरीर में गति आती है । गावों मे आज भी लोहड़ी के समय सरसों का साग, मक्की की रोटी अतिथियों को परोस कर उनका स्वागत किया जाता है ।

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