प्रकृति से जुड़ा सामाजिक, सांस्कृतिक,एवं लोक-पारंपरिक त्योहार जो एक अनूठी
पर्वतीय संयस्कृति की त्रिवेणी ‘फूल-फूल माई’ ‘फूल देई’ त्योहार
है , देव भूमि कुमाऊँ ट्रस्ट
एन टी 24 न्यूज़
विनय कुमार
चंडीगढ़
रंगोली, फूल-फूल
माई फूल देई त्यौहार मानव व प्रकृति के पारस्परिक संबंधों का ऋतु पर्व है रंगोली
आंदोलन' की रचनात्मक मूहीम के चलते इस हिमालयी पावन ऋतु पर्व
को नौनिहालों ने बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया । रंग बिरंगे फूलों की
बरसात पर्वतीय परंपरानुसार तय वक़्त पर
अपने द्वार पर बच्चों के स्वागत के लिए खड़े सभी बच्चे द्वार पर फूल बरसाते हुए ‘फूल-फूल माई दाल द्ये चावल द्ये खूब खूब खाजा’ गाते
रहे । परम्परानुसार बच्चे यह तब तक गाते हैं जब तक
उन्हें गृह स्वामी की ओर से उपहार स्वरूप कुछ भेंट मे नहीं मिल जाता है । फूलदेई
पर्व पर रंगोली अभियान को और भव्य बनाने के उद्देश्य से पर्वतीय समाज की महिलाओं
को भी साथ में जोड़ा गया हैl परम्परानुसार बच्चों को अपने हाथ से एक एक मुट्ठी
चावल व गेहूं भेंट मे दिया तत्पश्चात नौनिहालों को गिफ्ट पैकेट भी दिए । अब बहुत
स्थानों पर लोग पुनः इस पर्व को भव्यता के साथ मानने लगे है . इस पर्व को लेकर
क्या आम और क्या खास सभी मे जबर्दस्त उत्साह देखने को मिल रहा है । जिसे अब अगले
वर्ष से और अधिक व्यापकता दी जाएगी प्रत्येक मौहल्ले मे अलग-अलग टोली बनाकर बच्चों
को घर घर भेजा जाएगा । किसी भी आयोजक स्वयं सेवी संस्थावों या बच्चों की टोली को
कभी भी रुपया / पैसा भेंट मे या आर्थिक मदद के तौर पर न दिया जाय ऐसा करने से फिर
यह मूहीम भी सिर्फ धन जुटाने का माध्यम बनकर रह जाएगी । देव भूमि कुमाऊँ ट्रस्ट के
संस्थापक पं,जयशंकर जोशी ने कहा कि उनकी एक सोच है जिसमें
उन्हें हर तबके का साथ मिले । कोई एन जी ओ या संगठन नहीं है बल्कि यह आम लोगों के
सहयोग से बनाया गया एक जनचेतना समूह सबका
ट्रस्ट है । प,जयशंकर जोशी ने कहा कि आज तक मे जो भी कार्य
करते आया हु मुझे सरकार से किसी भी प्रकार का सहयोग खर्चा नही मिलता स्वतः खुद ही
खर्चा उठाता हु । पर्वतांचल की यह अनूठी बाल पर्व की परम्परा जो मानव और प्रकृति
के बीच के पारस्परिक सम्बन्धों का प्रतीक है वह वर्तमान मे अपनी पहचान खोता जा रहा
है । अत: आज के फूल फूल माई / फूल देई के शुभअवसर पर इस पत्र के मार्फत अपने सभी
सम्मानित मीडिया संस्थानों , मीडिया कर्मियों, संस्कृति कर्मियों सामाजिक चिंतकों से निवेदन है कि व इस सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पारम्परिक बाल पर्व के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु अपने स्तर
से भी जोरदार पहल करें । मेरा सुझाव व मांग सरकार से यह भी है कि प्रत्येक वर्ष
राज्य के सभी स्कूलों मे बच्चों को इस बालपर्व फूलदेई को मनाने के लिए प्रेरित
किया जाय व इस परम्परा से संबन्धित लेख या कविताओं को नौनिहालों के पाठ्यक्रम मे
भी शामिल किया जाय । आप सभी महानुभावों की ओर से इस विषय पर ठोस सकारात्मक पहल
होनी चाहिये है अपने स्तर से हर सम्भव
प्रयासरत करूँगा पूरी ईमानदारी ऊर्जा के
साथ चलकर हर सम्भव सहयोग के लिए तत्पर रहूँगा, मुझे आज
उम्मीद ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वाश है कि मेरे द्वारा सामाजिक, लोक परंपरा, संस्कृति संरक्षण के क्षेत्र मे चलाई जा
रही जन चेतना अभियान का हिस्सा बनकर इस मुहीम को सफल बनाए आप सबके सहयोग से परवान
चढ़ेगा, व आने वाले वर्षों मे यह यह बाल उत्सव राज्य मे ही
नहीं अपितु देश और दुनियाँ के कोने कोने मे रहने वाले हमारे प्रवासी जन भी अपनाने
लगेंगे। बाल पर्व के रूप में पहाड़ी
जन-मानस में प्रसिद्ध फूलदेई त्यौहार से ही हिन्दू शक संवत शुरू हुआ फिर भी हम इस
पर्व को बेहद हलके में लेते हैं. जहाँ से श्रृष्टि ने अपना श्रृंगार करना शुरू
किया जहाँ से श्रृष्टि ने हमें कोमलता सिखाई जिस बसंत की अगुवाई में कोमल हाथों ने
हर बर्ष पूरी धरा में विदमान आवासों की देहरियों में पुष्प वर्षा की उसी धरा के हम
शिक्षित जनमानस यह कब समझ पायेंगे कि यह अबोध देवतुल्य बचपन ही हमें जीने का मूल
मंत्र दे गया फूल देई (फूलसंग्राद)की हार्दिक शुभकामनाएँ देव भूमि कुमाऊँ ट्रस्ट
रजि ।
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