1978 से 1987 तक मानक साहब के साथ गीत गाने  वाले
सुखविन्दर पंछी  का नया गाना विरसा लांच
"मेरा रंगला पंजाब सोना जग तों"  पंछी 
ने गीत गाया व धर्मेंद्र ने उस पर एक्टिंग की फ़िल्म रंगला पंजाब 1992
में
एन टी 24 न्यूज़
विनय कुमार शर्मा
चंडीगढ़
कुलदीप मानक एक लीजेंड थे और
उनके जैसी दाढ़ी रखकर कोई कहे कि वह कुलदीप मानक जैसा बन जाएगा तो ऐसा नहीं है। यह
कहना है प्रसिद्ध पंजाबी सिंगर और कुलदीप मानक के जेठे शागिर्द सुखविंदर पंछी का।
सुखविंदर पंछी ने यह बात चंडीगढ़ प्रेस क्लब में अपने नए गीत विरसा की लांचिंग के
दौरान कही। सतरंग इंटरटेनर बैनर के तले प्रसिद्ध गायक "सुखविन्दर
पंछी के नये गीत ’ विरसा ‘
की लांचिंग वीरवार को की गई।  ।
वारिस गीत को बॉबी बाजवा ने डायरेक्ट किया है। ‘छल्ले
मूंदियाँ’ गीत के साथ अपनी अलग पहचान बनाने वाले गायक ‘सुखविन्दर पंछी’ ने कहा कि गायकी एक कला है और कला
की ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए आपको काफी मेहनत चाहिए। सुखविन्दर पंछी ने कहा कि
उनको बचपन से ही गायकी का पैशन था और जब वह कुलदीप मानक के सानिध्य में पहुंचे तो
उनको वहां संगीत की वह शिक्षाएं मिलीं जिन्होंने उनको एक मुकाम पर पहुंचा दिया। सुखविन्दर पंछी ने कहा कि वर्ष  1978 से 1987
तक मानक साहब के साथ गाया। वर्ष 1990 में उनका
पहला गीत रिलीज हुआ। इसको श्रोताओं  ने बहुत प्यार दिया। मुंडा  दिल दा
नई माड़ा, अरे बुरा,चन जिहा  यार
नहीं रुसाईदा, दिल्ली दे  हवाई अड्डे ते  और,"चढ़दी  जवानी विच  अल्लड  शौकीन कूड़े  मूछ फुट गभरू
दा  प्यार भालदी काफी चर्चित रहा। इसके बाद शाहां
दिए कुड़िये टेप विच , ’ हूँ तेनु चंगा   नहीं लगदा
 मैं ’,इश्क  नचावे गली गली, ‘तवीतड़ी’ जैसे गीत आए।  टी सीरीज की  धार्मिक टेप सुरमे मरदे  नहीं, चीची  वाला छल्ला ने भी उऩको नया मुकाम दिया। उन्होंने बताया कि शहीद ऊधम सिंह फ़िल्म में मसहूर पंजाबी अभिनेत्री ‘राजिन्दर
रूबी ’ के साथ गाया। इस गीत को लोगों ने काफी प्यार दिया। ‘जाट
पंजाब दा’ पंजाबी फ़िल्म में धार्मिक गीत ‘बाजां वालिया कचहरी तेरी आए जग दी  कचहरी हार के’  को लगातार जालंधर दूरदरशन ने दस साल टेलीकास्ट किया। बहुचर्चित रही पंजाबी
फिल्में जिन में ‘पंछी  ’ ने गीत
गाए "नयन प्रीतो दे  कब्ज़ा, "दूल्हा भट्टी
में भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा। सुखविन्दर पंछी का का
जन्म जालंधर जिले के  गाँव सरींह में पिता रुलदू राम और माता हरबंस कौर के घर
हुआ।तीन महीनों की उम्र में ‘पंछी ’ के
सिर से पिता का साया उठ गया। तंगी और बदहाली में पंछी का बचपन बीता लेकिन पंछी ने
हार नहीं मानी। उन्होंने कहा कि वह गाँव की गलियों में अक्सर कुलदीप मानक साहब के
गीत गुनगुनाते रहते थे। घर से खेत को जाना और वहाँ भी मानक की कलियों गाते रहना
पंछी का शौक  था। 

 
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