* आज का हिन्दू पंचांग *, * दिनांक - 28 जुलाई 2018 *, * दिन – शनिवार *, * विक्रम संवत – 2075 *, * शक संवत -1940 *, * अयन – दक्षिणायन *, * ऋतु – वर्षा *, * मास – आषाढ़ *, * पक्ष – शुक्ल *, * तिथि - रात्रि 04:20 तक प्रतिपदा *, * नक्षत्र - रात्रि 03:38 तक श्रवण *, * योग - दोपहर 12:01 तक प्रीति *, * राहुकाल - सुबह 09:16 से 10:54 *, * सूर्योदय - 06:11 *, * सूर्यास्त - 19:18 *, * दिशाशूल - पूर्व दिशा में *
* व्रत पर्व विवरण *
* विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34) * बेल (बिल्व) *, * स्कंद पुराण के अनुसार रविवार और द्वादशी के
दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए । इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते
हैं । * जिस स्थान में बिल्ववृक्षों का घना वन है, वह स्थान काशी के समान पवित्र है । * बिल्वपत्र छः मास तक बासी नहीं माना जाता l * चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार को तथा दोपहर के बाद
बिल्वपत्र न तोड़ें । * 40 दिन तक बिल्ववृक्ष के सात पत्ते प्रतिदिन
खाकर थोड़ा पानी पीने से स्वप्न दोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है ।* घर के आँगन में बिल्ववृक्ष लगाने से घर पापनाशक और यशस्वी होता है । बेल का
वृक्ष उत्तर-पश्चिम में हो तो यश बढ़ता है, उत्तर-दक्षिण में हो तो सुख शांति बढ़ती है
और बीच में हो तो मधुर जीवन बनता है । *
* चतुर्मास में बिल्वपत्र की महत्ता *
*चतुर्मास में शीत जलवायु के कारण वातदोष
प्रकुपित हो जाता है। अम्लीय जल से पित्त भी धीरे-धीरे संचित होने लगता है । हवा
की आर्द्रता (नमी) जठराग्नि को मंद कर देती है । सूर्यकिरणों की कमी से जलवायु
दूषित हो जाते हैं । यह परिस्थिति अनेक व्याधियों को आमंत्रित करती है । इसलिए इन
दिनों में व्रत उपवास व होम - हवनादि को हिन्दू संस्कृति ने विशेष महत्त्व दिया है
। इन दिनों में भगवान शिवजी की पूजा में प्रयुक्त होने वाले बिल्वपत्र धार्मिक लाभ
के साथ साथ स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करते हैं । * बिल्वपत्र उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है । ये कृमि व
दुर्गन्ध का नाश करते हैं । इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं । चतुर्मास में
उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है । * बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन
उतारने वाले हैं । ये मूत्र के प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं । शरीर के
सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं । इससे शरीर की
आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है । बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं।
शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं । इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है । *
* बिल्वपत्र के प्रयोग *
* बेल के पत्ते पीसकर गुड़ मिला के गोलियाँ
बनाकर खाने से विषमज्वर से रक्षा होती है । * पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से इन
दिनों में होने वाली सर्दी, खाँसी, बुखार आदि कफजन्य रोगों में लाभ होता है
। *
बारिश में दमे के मरीजों की साँस फूलने लगती है। बेल के
पत्तों का काढ़ा इसके लिए लाभदायी है । * बरसात में आँख आने की बीमारी (Conjunctivitis) होने लगती है । बेल के पत्ते पीसकर आँखों पर लेप करने से एवं पत्तों का रस
आँखों में डालने से आँखें ठीक हो जाती है । * कृमि नष्ट करने के लिए पत्तों का रस पीना
पर्याप्त है । * एक चम्मच रस पिलाने से बच्चों के दस्त तुरंत
रुक जाते हैं । * संधिवात में पत्ते गर्म करके बाँधने से सूजन
व दर्द में राहत मिलती है । * बेलपत्र पानी में डालकर स्नान करने से वायु
का शमन होता है, सात्त्विकता बढ़ती है । * बेलपत्र का रस लगाकर आधे घंटे बाद नहाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है । * पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त (Acidity) में आराम मिलता है । * स्त्रियों के अधिक मासिक स्राव व श्वेतस्राव (Leucorrhoea) में बेलपत्र एवं जीरा पीसकर दूध में मिलाकर पीना खूब लाभदायी है । यह प्रयोग
पुरुषों में होने वाले धातुस्राव को भी रोकता है । * तीन बिल्वपत्र व एक काली मिर्च सुबह चबाकर खाने से और साथ में ताड़ासन व
पुल-अप्स करने से कद बढ़ता है । नाटे ठिंगने बच्चों के लिए यह प्रयोग आशीर्वादरूप
है । *
मधुमेह (डायबिटीज) में ताजे बिल्वपत्र अथवा सूखे पत्तों का
चूर्ण खाने से मूत्रशर्करा व मूत्रवेग नियंत्रित होता है । *
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