हर वक्त मास्क लगाने से सोचने समझने
की दिमागी क्षमता हो रही ख़तम : भुवनेश सूद
एन टी24 न्यूज़
राकेश शर्मा
हिमाचल
सर्व समाज जनहित मंच के
प्रदेश अध्यक्ष भुवनेश सूद ने प्रेस नोट जारी करते हुए कहा कि हमारी सरकारें कोरोना
के नाम पर लोगों को डराने धमकाने का जो काम कर रहे है वो आम लोगों की समझ से बाहर होते
जार कहा है. एक साल से कहीं लॉक डाउन, कहीं कर्फ्यू, कहीं बिमारी की दहशत, जिस से लोग
इतने भयभीत हो गए हैं और हर टाइम मास्क लगाने से लोगों की सोचने समझने की दिमागी क्षमता
भी ख़तम हो रही है. खाना पैक होते हुए तो हमे देखा एवं सुना था पर अब लाशों को भी पैक
कर के लाया जा रहा है यह एक अचम्भे से कम नहीं है. हॉस्पिटल वाले एस्ट्रोनॉट जैसे कपडे
पहन कर डेड बॉडी का अंतिम संस्कार कर रहे है और यह कहते है की इस लाश से किसी को कोरोना
वायरस ना हो जाए इसीलिए इसको पैक कर के दे रहे हैं। पर आठवीं में पढ़ने वाला एक बच्चा
भी यह बता सकता है की एक मृत शरीर कोई वायरस नहीं फैला सकता क्यूंकि ये इन्फेक्शन तो
सांस लेने एवं मुँह के द्वारा होता है। डेड बॉडी ना तो सांस लेती है और ना ही बोलती
है। तो फिर एक लाश कोरोना वायरस कैसे फैला सकती है। इसके अलावा क्या आप जानते है की
चीन में कितने ही बच्चों की मृत्यु मास्क डालने की वजह से हो गयी यह बात हमे आज तक
किसी न्यूज़ चैनल वालों ने नहीं बताईं। नई जेर्सी में एक आदमी का ऍन 95 मास्क पहनने
की वजह से सड़क हादसा हो गया. तंजानिया में बिना मास्क एवं सोशल डिस्टन्सिंग के फुटबॉल
मैच हो रहे है जिसमे पचास से साठ हज़ार लोग एक साथ स्टेडियम में मौजूद होते है . उनमे
से किसी को भी कोरोना नहीं हुआ न ही किसी की कोरोना से मृत्यु हुई. वियतनाम देश में
दस करोड़ की आबादी में आज तक कोरोना से सिर्फ पैंतीस लोगों की मृत्यु हुई. वहां पे न
तो लोगों को मास्क डालने को कहा जा रहा है, न ही दवाइयों का लोगों पर एक्सपेरिमेंट
कर रहे है और न ही लॉक डाउन लगाया गया है. तो इसके बारे में हमे क्यों नहीं बताया गया.
इसी तरह इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च की 10 मई 2020 की दिशा निर्देशों में कहा था
की किसी भी मृत्यु चाहे किसी भी वजह से क्यों न हो उसको कोविद की ही डेथ डिक्लेअर करनी
है. कोई भी अगर सड़क कर मर रहा है या किसी भी दुर्घटना का शिकार हो रहा है उसको भी कोविद
की ही डेथ डिक्लेअर किया जा रहा है. तो इसी तरह लोगों को दिखया जा रहा है की हमारे
देश में कोरोना की वजह से मृत्यु दर तेज़ी से बढ़ रहा है. बड़े बड़े स्टोर्स खुले हुए है
और छोटे उद्योगों को कोरोना के नाम पर बंद किया जा रहा है. तो क्या ये बड़े स्टोर्स
कोरोना नहीं फैला रहे. हमने तो किसी भी इंसान की मृत्यु कोरोना से होते हुए नहीं देखि.
जिसको भी खांसी जुकाम बुखार हुआ वो अपने आप ठीक हो गया. मृत्यु तो सिर्फ उनकी
हुई जिन्होंने गलत दवाइयों का सेवन किया. यह कोई भी नया वायरस नहीं है यह तो सिर्फ
हमेशा से होने वाला खांसी और बुखार है. क्यूंकि जब भी कोई नया वायरस आता है तो उसपर
रिसर्च की जाती है और उसको इसोलेटे किया जाता है. पर कोरोना की बरी में तो ऐसा कुछ
भी नहीं हुआ. कोरोना के लिए इस्तेमाल की जाने वाली टेस्ट किट भी एफ डी ऐ के द्वारा
एप्रूव्ड नहीं है. पंजाब में जो किसानों द्वारा लाखों की संख्या में प्रोटेस्ट किया
जा रहा है उनमे तो किसी को भी कोरोना नहीं हुआ. कोई डिस्टन्सिंग नहीं है कोई मास्क
नहीं है फिर भी एक भी किसान को कोरोना नहीं हुआ. क्यूंकि यह बेवकूफ बनाने की चाल है.
बिल गेट ने पांच साल पहले कैसे बता दिया की कोई वायरस ऑउटब्रेक होने वाला है. यह सब
सोच समझी साजिश है. जो हमे दवाइयां दी जा रही है वो एंटीबायोटिक्स है जो की बैक्टीरिया
को मारने के लिए दी जाती है. पर कोरोना तो एक वायरस है तो फिर हमे यह एंटीबायोटिक्स
क्यों खिलाई जा रही है. साथ ही एंटी मलेरियल जैसी दवाइयां भी दी जा रही है जो मलेरिया
के मरीज़ों को दी जाती है. साथ ही एंटी अच् आई वी दवाइयां भी दी जा रही है . यह सब कोरोना
के केस में बेमतलब है. इनको इस्तेमाल करने का कोई भी प्रमाण नहीं है. डब्लू अच् औ की
सॉलिडेरिटी रिपोर्ट के मुताबिक अगर रेमटसेवेर दी जाएगी तो 100 में से 12 लोग
भगवान को प्यारे ज़रूर हो जाएंगे लेकिन सी डी सी की रिपोर्ट यह है की 100 में से
99.7 लोग कोरोना वायरस से बच सकते है . यानि की अगर 100 लोगों को वायरस होता है तो
99 तो बच ही जाएंगे परन्तु अगर दवाई खाएंगे तो सिर्फ 88 ही बचेंगे . यह है असली खेल.
लोग पूछते है की कोरोना से मृत्यु क्यों हो रही है, तो अगर हम उलटी सीधे दवाइयां खाएंगे
तो बचेंगे कैसे. इसका सही इलाज प्राकृतिक चीज़ों को इस्तेमाल करने से ही होगा जैसे की
हल्दी, तुलसी, गिलोय , नारियल पानी, मौसमी के जूस का सेवन आदि. डेनमार्क जैसे
देश में प्रोटेस्ट हो रहा है. लाखों लोगों ने प्रोटेस्ट किया तो मीडिया ने उसके बारे
में हमे क्यों नहीं दिखाया, वहां पर वैक्सीन का कानून पास हुआ था तो लोगों ने 9 दिन
सड़कों पर आ कर उस कानून को हटवा दिया. और मास्क पहनने के कारन बैक्टीरियल निमोनिया
बढ़ता जा रहा है इसके बारे में किसी को बताया क्यों नहीं जा रहा. जर्नल ऑफ़ ओर्थपेडीक
ट्रांसलेशन 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर सर्जरी करते हुए मास्क लगते है तो बैक्टीरिया
बढ़ जाता है यानि की मास्क पहनने से बीमारी बढ़ती है. और सी डी सी की 10 जून की
रिपोर्ट के मुताबिक अगर हम मास्क को लम्बे टाइम तक पहन कर रखने से ऑक्सीजन की कमी हो
जाती है. जिससे हमारी सोचने समझने की क्षमता काम हो जाती है. और आगे चल कर दिमागी बीमारियां
भी हो सकती है. लोगों को मास्क पहनने से अस्थमा के लक्षण भी आने लग पड़े थे. हमे यह
क्यों नहीं बताया जा रहा की सूरज की रौशनी से कितने ही कीटाणु मर जाते है, खुली हवा
में कितने कीटाणु मर जाते है. हमे घर की बंद हवा में क्यों कैद कर के रखा गया है. इसी
तरह पोलियो की वैक्सीन से हर साल पचास हज़ार लकवे के नए केस आते है. यह तो मीडिया हमे
नहीं बताती. इस कोरोना वैक्सीन में भरी मात्रा में एल्युमीनियम, फोर्मेल्ड़ेहीदे, मरकरी
जैसे कैंसर करक चीज़े पड़ी हुई है इसके बारे में हमे क्यों नहीं बताया जा रहा है. मीडिया
हमे गलत खबरें सुना सुना के इतनी हद तक डरा रहा है जिस से इंसान की सोचने समझने की
क्षमता भी काम हो जाती है. इसीलिए हमे आंख बंद कर के किसी की भी बातों पर विश्वास नहीं
करना चाहिए. अपना रिसर्च अपने आप कीजिये और समझदार बनिये. और आगे आने वाले समय के लिए
खुद को तैयार कीजिये.