थिएटर फॉर थिएटर द्वारा आयोजित 14th विंटर नेशनल थियेटर फेस्टिवल के 17 वें दिन
रूबरू
कार्यक्रम में आये अनुभवी पत्रकार और थिएटर एक्टिविस्ट श्री बलजीत परमार
एन टी 24 न्यूज़
विनय कुमार
चंडीगढ़
सेक्टर 23 बाल भवन के प्रांगन
में हो रहे थिएटर फॉर थिएटर द्वारा आयोजित 14th विंटर नेशनल थियेटर फेस्टिवल के 17 वें दिन का
रूबरू कार्यक्रम चंडीगढ़ के कला प्रेमियों के लिए उस समय यादगार बन गया जब मुंबई
से आये अनुभवी पत्रकार और थिएटर एक्टिविस्ट श्री बलजीत परमार ने अपने जीवन के
अनुभवों की लंबी फ़ेहरिस्त उनके सामने रखी, जो की एक लघु
कथाकार,
कवि और अपने समय में चर्चित छात्र नेता भी रहे है. मूलतः
लुधियाना के जगराओं से ताल्लुक रखने वाले बलजीत जी के पिता फ़ौज में थे. बात उन
दिनों की है जब शिमला पंजाब की राजधानी था. 1958 में चंडीगढ़ के निर्माण के साथ ही पूरा परिवार यहाँ आ बसा. पिताजी उच्च शिक्षा
के पक्ष में थे तो उन्होंने नौवीं कक्षा में बलजीत जी का दाखिला DAV स्कूल में करवा दिया, जहाँ सभी उच्च
अधिकारीयों जैसे आई.ए.एस,
आई.पी.एस के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने आते थे, बस उनका रहन सहन देखकर अक्सर बलजीत जी का बड़े सपने देखने का
दिल करता. परन्तु पढाई में तेज़ ना थे और साथ ही अमीरज़ादों के साथ घूमने फिरने की
लत्त लग गयी थी,
जिसके चलते पिताजी ने उनका दाखिला सरकारी स्कूल में करवा
दिया लेकिन वह वहां भी फेल हो गए और घरवालों के दर से घर से पैसे चुराकर भागना ही
मुनासिब समझा,
एवं अपने चाचा के पास धनबाद आ गए l चाचा पेशे से ट्रक ड्राईवर थे, जिनके साथ काम के सिलसिले में लगभग पूरा भारत भ्रमण करने का
मौका मिला जहाँ उन्होंने ज़िन्दगी के कुछ नए अच्छे और बुरे अनुभवों का सामना किया
और ज़िन्दगी और करीब से जाना l किसी तरह से घर
वालों के समझाने बुझाने पर वापस चंडीगढ़ आये जहाँ पिताजी के दबाव दाने पर टाइपिंग
का काम सीखने लगे. यहाँ किस्मत ने साथ दिया और उन्ही दिनों पंजाबी भाषा को सरकारी
तौर पर लागू कर दिया गया और उनका चयन पंजाब सरकार के पहले “टाइपिस्ट” के तौर पर हुआ l इस बीच टाइपिंग के साथ साथ लेखन का शौक भी इनके जीवन में घर
कर बैठा था,
जैसे तैसे ग्रेजुएशन पूरी कर सुरजीत पातर और अन्य कईं लेखक
मित्रों के साथ पैसा इक्कठा कर 1975 में बंबई का रुख किआ.
किस्मत की देवी वहां भी प्रसन्न रही और जाते ही “इंटरनेशनल पंजाबी राइटर कांफ्रेंस” में भाग लेने
का मौका मिला जिसमें उस दौर के मशहूर अभिनेता देव आनंद और सुनील दत्त जैसी
सख्सियतें शामिल थी. बम्बई की ये चकाचौंध किसी सपने से काम नहीं थी. उसी दौरान
उन्हें इसी मंच पर उन्हें अपनी लिखी नज़्म सुनाने का मौका मिला जिसको खूब सराहा गया
एवं बहुंत से प्रसंसकों ने तो मंच पर आकर उन्हें गले ही लगा लिया. बस यहीं से
उन्होंनेबम्बई में अपनी जड़े मज़बूत की l शुरुआत
अच्छी होने के बावजूद आजीविका चलने में कठिनाई हो रही थी. तभी एक मित्र की सिफारिश
पर प्रसिद्ध हस्तियों के इंटरव्यू करने के मौके मिले और पत्रकारिता की ओर झुकाव हो
गया. किस्मत फिर एक बार मेहरबान रही और पत्रकारिता में महारत हासिल करने के बाद
उन्हें एक प्रसिद्ध मैगजीन में स्थायी नौकरी मिल गयी जिसके साथ उनका 18 साल का राबता रहा और उसी दौरान उन्हें अनेकों विदेशी दौरों
पर जाने का मौका मिला. बलजीत परमार जी ने नम आँखों से बताया की बम्बई ने उन्हें राजेश
खन्ना और पंकज कपूर जैसे दोस्त दिए जो हर वक़्त उनके साथ रहे. बकौल बलजीत जी बंबई
में आधा से ज्यादा जीवन बिताने के बाद भी उनके दिलो दिमाग में आज भी पंजाब बस्ता
है और उन्हें जब भी मौका मिलता है तो वह यहाँ चले आते है. 1993 के संजय दत्त मामले के रिपोर्टर रहे बलजीत जी से जब इसी
विषय को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने बेबाकी से उसका उत्तर देते हुए कहा की
उन्हें सच की ताक़त पर पूरा यकीन है. वो पहले भी सच के साथ थे और आगे भी रहेंगे l
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