Tuesday, 15 May 2018

नवजोत सिद्धू रोड रेज मामले में चोट पहुंचाने के लिए दोषी करार


नवजोत सिद्धू रोड रेज मामले में चोट पहुंचाने के लिए दोषी करार
जेल नहीं जाना होगा, सिर्फ एक हजार रूपए का जुर्माना


विनय कुमार


   चंडीगढ,
    15 मई 2018
पंजाब के शहरी निकाय मंत्री नवजोत सिद्धू को      सुप्रीम कोर्ट ने रोड रेज मामले में चोट पहुंचाने के लिए दोषी करार दिया है। लेकिन सिद्धू को जेल नहीं जाना होगा। इस दोष के लिए उन पर सिर्फ एक हजार रूपए का जुर्माना लगाया गया है। इस मामले में सहअभियुक्त रविन्द्र सिंह को बरी कर दिया गया है।  सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को सदोष मानव वध के दोष से मुक्त कर दिया। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सिद्धू को सदोष मानव वध का दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने सिद्धू को तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई थी। जस्टिस जे.चेलमेश्वर और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद भी सिद्धू की राजनीतिक स्थिति पर कोई फर्क नहीं पडेगा। सिद्धू को मंत्री पद से इस्तीफा नहीं देना होगा और वे चुनाव लडने के अयोग्य भी नहीं होंगे। चुनाव कानून की धारा आठ के तहत कोई सांसद या विधायक तभी सदन की सदस्यता के अयोग्य होता है जबकि वह दो साल या उससे अधिक कारावास की सजा पाता है। तभी वह चुनाव लडने के अयोग्य होता है।  उधर रोडरेज की इस घटना में जान गंवाने वाले गुरनाम सिंह के पुत्र नरवेदिनदर सिंह ने सिद्धू पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि परिवार को कुछ समय की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फेसले का सम्मान करते हैं लेकिन हमें न्याय से वंचित किया गया है। अभियोजन के अनुसार सिद्धू और सहअभियुक्त रूपिंदर सिंह संधू 27 दिसम्बर 1988 को पटिायाला के शेरानवाला गेट पर एक जिप्सी में मौजूद थे। उसी समय मृतक गुरनाम सिंह अन्य दो लोगों के साथ मारूति कार में बैंक की ओर जा रहे थे। गुरनाम सिंह ने जिप्सी में बैठे लोगों को कहा कि उसे रास्ता दे दे। दोनों ने गुरनाम सिंह की पिटाई कर दी और भाग गए। गुरनाम सिंह को अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। सिद्धू और संधू पर हत्या का मुकदमा चलाया गया था लेकिन निचली अदालत ने सिद्धू  को सितम्बर 1999 को बरी कर दिया था। बाद में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सिद्धू को सदोष मानव वध का दोषी करार दिया था। सिद्धू को तीन वर्ष के कारावास और एक लाख रूपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। बाद में 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा को स्टे कर दिया था

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