क्या आपकी कुंडली आपका
रोग डाक्टर से भी पहले बता सकती है ? - मदन गुप्ता
सपाटू, ज्योतिर्विद्
एन टी 24 न्यूज़
विनय
कुमार
चंडीगढ़
भले
ही आज मेडीकल साईंस कैंसर जैसे रोग का डायग्नोज करके उसका निदान कर रही है परंतु
इस रोग का पता उसके होने के बाद ही डाक्ठर बता सकता है, अधिक पहले नहीं।
कई बार तो कैंसर चौथी स्टेज पर पहुंच जाता है तब टैस्टों से पता चलता है। हार्ट
अटैक चुपके से हो जाता है। परंतु ज्योतिष विज्ञान की विशेषता यह है कि जब
मनुष्य इस संसार में आता है तो जीवन का सारा लेखा जोखा उसकी जन्मपत्री बता देती है
कि इस व्यक्ति की शिक्षा क्या होगी, विवाह कब होगा,
संतान क्या होगी, व्यवसाय क्या होगा,
दुर्घटना कब होगी , रोग क्या होगा,
आयु कितनी है,मृत्यु कैसे होगी..... आदि
आदि । इस लेखक के दादा जी स्वयं ज्योतिषी थे , जिनकी बनाई
कुंडली में सपष्ट लिखा था कि यह जातक 50 वर्ष की
आयु में मेरा व्यवसाय संभालेगा , 57 साल में पत्नी वियोग
होगा, 64 वें वर्ष में हृदयघात होगा, 75 साल पूरे नहीं हो पाएंगे। पहली भविष्यवाणियां, अक्षरक्षः सत्य रहीं जबकि अंतिम अभी फलित होने में समय है। आज हम अपने पाठकों को रोग के योग से परिचित करवा रहे हें ताकि उन्हें
समय रहते सचेत होना चाहिए। हालांकि ज्योतिषीय गणना इतनी आसान नहीं हैं जितनी लगती
हैं , फिर भी हम मुख्य बिंदुओं की चर्चा करेंगे। रोग
देखने के लिए आपको अपनी चंद्र राशि, नक्षत्र,
लग्न ,कुंडली के भाव, दशा, गोचर, त्रिशांश
कुंडली ,ग्रहों के कारकतत्वों आदि का सामान्य ज्ञान होना
आवश्यक है। जन्मांग के 12 भाव या घर शरीर के विभिन्न
भागों को दर्शाते हैं। यदि इन भावों में क्रूर ग्रह बैठे हों या उनकी दृष्टि हो या
परस्पर विरोधी ग्रह, विरोधी राशियों में हों तो शरीर के
उस भाग में उससे संबधित रोग की आशंका रहती हैं । रोग कब होगा यह दशा , गोचर, साढ़ेसाती , शनि
के ढय्ये आदि पर निर्भर करेगा । चिकित्सा ज्योतिष के प्रसंग में कुंडली के भावों के कारकत्व का विचार
करना अब संगत होगा |प्रथम भाव : सिर, मस्तिष्क, सामान्यता: शरीर, बाल, रूप, त्वचा, निद्रा, रोग से छुटकारा, आयु, बुढापा तथा कार्य करने की योग्यता.
द्वितीय भाव : चेहरा, आँखें (दायी आंख), दांत, जिव्हा, मुख, मुख के भीतरी भाग, नाक, वाणी, नाखून, मन की स्थिरता. तृतीय भाव : कान
(दायाँ कान), गला, गर्दन, कंधे, भुजाएं, श्वसन प्रणाली, भोजन नलिका, हंसिया, अंगुष्ठ से प्रथम अंगुली तक का भाग,स्वप्न, मानसिक अस्थिरता, शारीरिक स्वस्थता तथा
विकास. चतुर्थ भाव : छाती (वक्ष स्थल ), फेफड़े, ह्रदय (एक मतानुसार), स्तन, वक्ष स्थल की रक्त वाहिनियाँ, डायफ्राम.
पंचम भाव : ह्रदय, उपरी उदर तथा उसके अवयव जैसे
अमाशय, यकृत, पित्त की
थैली, तिल्ली, अग्नाशय, पक्वाशय, मन, विचार,गर्भावस्था, नाभि. छठा भाव : छोटी आंत, आन्त्रपेशी, अपेंडिक्स, बड़ी आंत का कुछ भाग, गुर्दा, ऊपरी मूत्र प्रणाली , व्याधि, अस्वस्थता, घाव, मानसिक पीड़ा,पागलपन, कफ जनित रोग, क्षयरोग, गिल्टियाँ, छाले वाले रोग, नेत्र रोग, विष, अमाशयी नासूर. सप्तम भाव : बड़ी आंत
तथा मलाशय, निचला मूत्र क्षेत्र, गर्भाशय, अंडाश, मूत्रनली. अष्टम भाव : बाहरी जननांग, पेरिनियम, गुदा द्वार, चेहरे के कष्ट, दीर्घकालिक या असाध्य रोग, आयु, तीव्र मानसिक वेदना. नवम भाव : कूल्हा, जांघ
की रक्त वाहिनियाँ, पोषण. दशम भाव : घुटने , घुटने के जोड़ का पिछ्ला रिक्त भाग. एकादश भाव : टांगें , बायाँ कान, वैकल्पिक रोग स्थान, आरोग्य प्राप्ति. द्वादश भाव : पैर, बांयी
आंख, निद्रा में बाधा, मानसिक असंतुलन, शारीरिक व्याधियां, अस्पताल में भर्ती
होना, दोषपूर्ण अंग, मृत्यु.
जानें आपकी राशि में लिखा है कौन-सा रोग
1.मेष : इस राशि का स्वामी मंगल है। यह सिर या मस्तिष्क की कारक है और इसके कारक ग्रह मंगल और गुरू हैं। लग्न में यह राशि स्थित हो तथा मंगल नीच के हो या बुरे ग्रहों की इस पर दृष्टि हो तो ऎसाजातक उच्चा रक्तचाप का रोगी होगा। आजीवन छोटीमोटी चोटों का सामना करता रहेगा सीने में दर्द की शिकायत रहती है और ऎसे जातक के मन में हमेशा इस बात की शंका रहती है कि मुझे कोई जहरीला जानवर ना काट ले परिणाम यह होता है किऎसे जातक का आत्म विश्वास कमजोर हो
जाता है और उसकी शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है जो अनावश्यक रूप से विविध प्रकार की मानसिक बीमारियों का कारण होती है2. वृषभ :इस राशि का स्वामी शुक्र है यह मुख की कारक राशि है व लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह शुक्र, बुध और शनि होते हैं ऎसे जातक को मुख संबंधी बीमारीछाले, तुतलाकर बोलना आदि की शिकायत रहती है तथा जातक की संतान को आजीवन बुरे स्वास्थ्य का सामना करना प़डता है 3. मिथुन :मिथुन राशि का स्वामी बुध है यह वक्ष, छाती, भुजाएं व श्वास नली की कारक है लग्न मे स्थित होने पर इसके कारक ग्रह शुक्र, बुध व चन्द्रमा होते हैं यदि बुध कुण्डली में नीच का हो या अन्य क्रूर ग्रहों से पीडत हो तोजातक फेफ़डों से संबंधित रोग जैसे टी.बी., श्वास नली में खराबी, वायु प्रकोप (गैस व अपच), जी घबराना, हाथ व माँस पेशियों पर विपरीत प्रभाव पडता है 4. कर्क :कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा है यह राशि ह्वदय की कारक है इस राशि के लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह चन्द्रमा और मंगल होते हैं जातक की त्वचा व पाचन संस्थान पर विपरीत प्रभाव रहता है एवं जातक मेंआत्म विश्वास की कमी रहती है मानसिक अवसाद, कुण्ठा व जातक कमजोर दिल का होता है ऎसे जातक की संतान भी नीच विचारों की होती है5. सिंह :सिंह राशि का स्वामी सूर्य है जो नक्षत्रमण्डल का स्वामी है यह राशि गर्भ व पेट की कारक है इस राशि के लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह सूर्य और मंगल होते हैं 10 अंश पर मेष राशि में ये परम उच्च के तथा तुला राशि मेंपरम नीच के होते हैं सूर्य उग्र स्वभाव के, अगिA तत्व तथा इनका रंग हल्का लाल व पीला है यदि कुण्डली के लग्न में सिंह राशि है तथा यह या सूर्य नीच के हो या अन्यथा किसी प्रकार पीड़ित हो तो शरीर में रक्त संचार एवं जीवनी शक्ति प्रभावित होतीहै जातक को ह्वदयाघात, हडि्डयों की बीमारी व नेत्र रोगों से ग्रसित हो सकता है 6. कन्या :कन्याराशि के स्वामी बुध है तथा यह पेट व कमर के कारक हैं इस राशि के लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह बुध तथा शुक्र होते हैं नीच का या अन्यथा बुध पीड़ित होने पर पेट, पाचन क्रियाएं, यकृत संबंधित रोग व शुक्र केप्रभाव या संयोग के कारण गुप्त रोगों का व किडनी, गुदा से संबंधित रोग जातक को प्रदान करता है7. तुला :तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं तथा यह राशि मृत्राशय की कारक है लग्न में यह राशि स्थित होने पर इसके कार ग्रह शुक्र, शनि व बुध होते हैं एवं स्वामी के किसी भी प्रकार से पीड़ित होने पर या नीच का होने पर यह जातक को जननांग वमूत्राशय संबंधित रोगों से पीडत रखता है महिलाओं के मासिक धर्म व गर्भ धारण संबंधी क्रिया भी इसी के कारण प्रभावित होती है 8. वृश्चिक :वृश्चिक राशि के स्वामी मंग हैं यह राशि गुप्तांगों (लिंग व गुदा) की कारक है लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह मंगल, गुरू व चंद्रमा होते हैं इस राशि के लग्न में स्थित होने पर व राशि स्वामी के पीड़ित होने पर या नीच मेंस्थित होने पर या मंगल बद होने पर गुदा, लिंग, जननांग, यकृत, मस्तिष्क संबंधी व आंतों की बीमारियों से जातक को ग्रसित करती हैं 9. धनु : धनु राशि के स्वामी देवगुरू बृहस्पति हैं यह राशि जांघों व नितम्ब की कारक है गुरू पुरूष प्रधान, शांत व मौन प्रकृति के, रंग पीला तथा इनमें जल व अग्नि दोनों तत्व मौजूद है लग्न में स्थित होने पर इस राशि के कारक ग्रह गुरू वचन्द्रमा होते हैं 5 अंश पर कर्क में परमोच्चा व मकर राशि में परम नीच के होते हैं नीचस्थ व पीडत गुरू जातक को लीवर, ह्वदय, आंत, जंघा, कूल्हे व बवासीर रोगों से ग्रसित रखते हैं10. मकर :मकर राशि के स्वामी शनि है यह राशि घुटनों की कारक है शनि क्रूर ग्रह है लग्न में मकर राशिस्थित होने पर इसके कारक ग्रह शनि, शुक्र व बुध होते हैं शनि नीचस्थ या पीड़ित होने पर जातक को घुटनों, जांघ, कफ व पाचन तंत्र संबंधी बीमारियों से ग्रसित रखता है इसके अलावा पुरानी बीमारी यदि कोई है तो उस पर भी इसी राशि का प्रभावरहता है11. कुम्भ :कुम्भ राशि के स्वामी भी शनि है यह राशि पिण्डलियों की कारक है कुम्भ राशि लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह गुरू, शुक्र व शनि होते हैं शनि के पीड़ित या नीचस्थ होने पर व इस राशि के पीड़ित होने पर जातक पिण्डलियों,उच्च रक्तचाप, हर्निया व कई प्रकार की अन्य बीमारियों से ग्रसित रहता है क्योंकि ऐसाजातक खराब आदतों वाला व किसी भी प्रकार के नशे का आदि होता है जिसके परिणामस्वरूप वह कई प्रकार की व्याधियां पाल लेता है 12. मीन :मीन राशि का स्वामी देवगुरू बृहस्पति होते हैं यह राशि पैर के पंजों की कारक है लग्न में मीन राशि स्थित होने पर इसके कारक ग्रह सूर्य, मंगल व गुरू होते हैं राशि स्वामी के पीडत या नीचस्थ होने पर जातक लीवर, पंजों, तंत्रिका सेसंबंधी बीमारी व घुटनों संबंधी परेशानी जातक को रहती है संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि कुण्डली में रोगों का अध्ययन करते समय उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए व ग्रहों की युति, प्रकृति, दृष्टि, उनका परमोच्चा या परम नीच की स्थिति कागहन अध्ययन कर ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए ।
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