Monday, 1 July 2019

NT24 News : क्या आपकी कुंडली आपका रोग डाक्टर से भी पहले बता सकती है ? - मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्

क्या आपकी कुंडली आपका रोग डाक्टर से भी पहले बता सकती है ? - मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्
एन टी 24 न्यूज़
विनय कुमा
चंडीगढ़
भले ही आज मेडीकल साईंस कैंसर जैसे रोग का डायग्नोज करके उसका निदान कर रही है परंतु इस रोग का पता उसके होने के बाद ही डाक्ठर बता सकता है, अधिक पहले नहीं। कई बार तो कैंसर चौथी स्टेज पर पहुंच जाता है तब टैस्टों से पता चलता है। हार्ट अटैक चुपके से हो जाता है। परंतु ज्योतिष विज्ञान की विशेषता यह है कि  जब मनुष्य इस संसार में आता है तो जीवन का सारा लेखा जोखा उसकी जन्मपत्री बता देती है कि इस व्यक्ति की शिक्षा क्या होगी, विवाह कब होगा, संतान क्या होगी, व्यवसाय क्या होगा, दुर्घटना कब होगी , रोग क्या होगा, आयु कितनी है,मृत्यु कैसे होगी..... आदि आदि । इस लेखक के दादा जी स्वयं ज्योतिषी थे , जिनकी बनाई कुंडली में सपष्ट लिखा था  कि यह जातक 50 वर्ष की आयु में मेरा व्यवसाय संभालेगा , 57 साल में पत्नी वियोग होगा, 64 वें वर्ष में हृदयघात होगा, 75 साल पूरे नहीं हो पाएंगे। पहली भविष्यवाणियां, अक्षरक्षः सत्य रहीं जबकि अंतिम अभी फलित होने में समय है। आज हम अपने पाठकों को रोग के योग से परिचित करवा रहे हें ताकि उन्हें समय रहते सचेत होना चाहिए। हालांकि ज्योतिषीय गणना इतनी आसान नहीं हैं जितनी लगती हैं , फिर भी हम मुख्य बिंदुओं की चर्चा करेंगे। रोग देखने के लिए आपको अपनी  चंद्र राशि, नक्षत्र, लग्न ,कुंडली के भाव, दशा, गोचर, त्रिशांश कुंडली ,ग्रहों के कारकतत्वों आदि का सामान्य ज्ञान होना आवश्यक है। जन्मांग के 12 भाव या घर शरीर के विभिन्न भागों को दर्शाते हैं। यदि इन भावों में क्रूर ग्रह बैठे हों या उनकी दृष्टि हो या परस्पर विरोधी ग्रह, विरोधी राशियों में हों तो शरीर के उस भाग में उससे संबधित रोग की आशंका रहती हैं । रोग कब होगा यह दशा , गोचर, साढ़ेसाती , शनि के ढय्ये आदि पर निर्भर करेगा । चिकित्सा ज्योतिष के प्रसंग में कुंडली के भावों के कारकत्व का विचार करना अब संगत होगा |प्रथम भाव : सिरमस्तिष्कसामान्यता: शरीरबालरूपत्वचानिद्रारोग से छुटकाराआयुबुढापा तथा कार्य करने की योग्यता. द्वितीय भाव : चेहराआँखें (दायी आंख)दांतजिव्हामुखमुख के भीतरी भागनाकवाणीनाखूनमन की स्थिरता. तृतीय भाव : कान (दायाँ कान),  गलागर्दनकंधेभुजाएंश्वसन प्रणालीभोजन नलिकाहंसियाअंगुष्ठ से प्रथम अंगुली तक का भाग,स्वप्नमानसिक अस्थिरताशारीरिक स्वस्थता तथा विकास. चतुर्थ भाव : छाती (वक्ष स्थल )फेफड़ेह्रदय (एक मतानुसार)स्तनवक्ष स्थल की रक्त वाहिनियाँडायफ्राम. पंचम भाव : ह्रदयउपरी उदर तथा उसके अवयव जैसे अमाशययकृतपित्त की थैलीतिल्लीअग्नाशयपक्वाशयमनविचार,गर्भावस्थानाभि. छठा भाव : छोटी आंत,  आन्त्रपेशीअपेंडिक्सबड़ी आंत का कुछ भागगुर्दाऊपरी मूत्र प्रणाली , व्याधिअस्वस्थताघावमानसिक पीड़ा,पागलपनकफ जनित रोगक्षयरोगगिल्टियाँछाले वाले रोगनेत्र रोगविषअमाशयी नासूर. सप्तम भाव : बड़ी आंत तथा मलाशयनिचला मूत्र क्षेत्रगर्भाशयअंडाश,  मूत्रनली. अष्टम भाव : बाहरी जननांगपेरिनियमगुदा द्वारचेहरे के कष्टदीर्घकालिक या असाध्य रोगआयुतीव्र मानसिक वेदना. नवम भाव : कूल्हाजांघ की रक्त वाहिनियाँपोषण. दशम भाव : घुटने , घुटने के जोड़ का पिछ्ला रिक्त भाग. एकादश भाव : टांगें , बायाँ कानवैकल्पिक रोग स्थानआरोग्य प्राप्ति. द्वादश भाव : पैरबांयी आंखनिद्रा में बाधामानसिक असंतुलनशारीरिक  व्याधियांअस्पताल में भर्ती  होनादोषपूर्ण अंगमृत्यु.
जानें आपकी राशि में लिखा है कौन-सा रोग
1.मेष : इस राशि का स्वामी मंगल है। यह सिर या मस्तिष्क की कारक है और इसके कारक ग्रह मंगल और गुरू हैं। लग्न में यह राशि स्थित हो तथा मंगल नीच के हो या बुरे ग्रहों की इस पर दृष्टि हो तो ऎसाजातक उच्चा रक्तचाप का रोगी होगा। आजीवन छोटीमोटी चोटों का सामना करता रहेगा सीने में दर्द की शिकायत रहती है और ऎसे जातक के मन में हमेशा इस बात की शंका रहती है कि मुझे कोई जहरीला जानवर ना काट ले परिणाम यह होता है किऎसे जातक का आत्म विश्वास कमजोर हो 
जाता है और उसकी शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है जो अनावश्यक रूप से विविध प्रकार की मानसिक बीमारियों का कारण होती है2. वृषभ :इस राशि का स्वामी शुक्र है यह मुख की कारक राशि है  लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह शुक्रबुध और शनि होते हैं  ऎसे जातक को मुख संबंधी बीमारीछालेतुतलाकर बोलना आदि की शिकायत रहती है तथा जातक की संतान को आजीवन बुरे स्वास्थ्य का सामना करना प़डता है  3. मिथुन :मिथुन राशि का स्वामी बुध है यह वक्षछातीभुजाएं  श्वास नली की कारक है लग्न मे स्थित होने पर इसके कारक ग्रह शुक्रबुध  चन्द्रमा होते हैं  यदि बुध कुण्डली में नीच का हो या अन्य क्रूर ग्रहों से पीडत हो तोजातक फेफ़डों से संबंधित रोग जैसे टी.बी., श्वास नली में खराबीवायु प्रकोप (गैस  अपच), जी घबरानाहाथ  माँस पेशियों पर विपरीत प्रभाव पडता है 4. कर्क  :कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा है यह राशि ह्वदय की कारक है इस राशि के लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह चन्द्रमा और मंगल होते हैं जातक की त्वचा  पाचन संस्थान पर विपरीत प्रभाव रहता है एवं जातक मेंआत्म विश्वास की कमी रहती है मानसिक अवसादकुण्ठा  जातक कमजोर दिल का होता है ऎसे जातक की संतान भी नीच विचारों की होती है5. सिंह :सिंह राशि का स्वामी सूर्य है जो नक्षत्रमण्डल का स्वामी है यह राशि गर्भ  पेट की कारक है इस राशि के लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह सूर्य और मंगल होते हैं 10 अंश पर मेष राशि में ये परम उच्च के तथा तुला राशि मेंपरम नीच के होते हैं सूर्य उग्र स्वभाव केअगितत्व तथा इनका रंग हल्का लाल  पीला है यदि कुण्डली के लग्न में सिंह राशि है तथा यह या सूर्य नीच के हो या अन्यथा किसी प्रकार पीड़ित हो तो शरीर में रक्त संचार एवं जीवनी शक्ति प्रभावित होतीहै जातक को ह्वदयाघातहडि्डयों की बीमारी  नेत्र रोगों से ग्रसित हो सकता है 6. कन्या  :न्याराशि के स्वामी बुध है तथा यह पेट  कमर के कारक हैं इस राशि के लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह बुध तथा शुक्र होते हैं नीच का या अन्यथा बुध पीड़ित होने पर पेटपाचन क्रियाएंयकृत संबंधित रोग  शुक्र केप्रभाव या संयोग के कारण गुप्त रोगों का  किडनीगुदा से संबंधित रोग जातक को प्रदान करता है7. तुला  :तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं तथा यह राशि मृत्राशय की कारक है लग्न में यह राशि स्थित होने पर इसके कार ग्रह शुक्रशनि  बुध होते हैं एवं स्वामी के किसी भी प्रकार से पीड़ित होने पर या नीच का होने पर यह जातक को जननांग वमूत्राशय संबंधित रोगों से पीडत रखता है महिलाओं के मासिक धर्म  गर्भ धारण संबंधी क्रिया भी इसी के कारण प्रभावित होती है 8. वृश्चिक  :वृश्चिक राशि के स्वामी मंग हैं यह राशि गुप्तांगों (लिंग  गुदाकी कारक है लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह मंगलगुरू  चंद्रमा होते हैं इस राशि के लग्न में स्थित होने पर  राशि स्वामी के पीड़ित होने पर या नीच मेंस्थित होने पर या मंगल बद होने पर गुदालिंगजननांगयकृतमस्तिष्क संबंधी  आंतों की बीमारियों से जातक को ग्रसित करती हैं 9. धनु : धनु राशि के स्वामी देवगुरू बृहस्पति हैं यह राशि जांघों  नितम्ब की कारक है गुरू पुरूष प्रधानशांत  मौन प्रकृति केरंग पीला तथा इनमें जल  अग्नि दोनों तत्व मौजूद है लग्न में स्थित होने पर इस राशि के कारक ग्रह गुरू वचन्द्रमा होते हैं 5 अंश पर कर्क में परमोच्चा  मकर राशि में परम नीच के होते हैं नीचस्थ  पीडत गुरू जातक को लीवरह्वदयआंतजंघाकूल्हे  बवासीर रोगों से ग्रसित रखते हैं10. मकर  :मकर राशि के स्वामी शनि है यह राशि घुटनों की कारक है शनि क्रूर ग्रह है लग्न में मकर राशिस्थित होने पर इसके कारक ग्रह शनिशुक्र  बुध होते हैं शनि नीचस्थ या पीड़ित होने पर जातक को घुटनोंजांघकफ  पाचन तंत्र संबंधी बीमारियों से ग्रसित रखता है इसके अलावा पुरानी बीमारी यदि कोई है तो उस पर भी इसी राशि का प्रभावरहता है11. कुम्भ  :कुम्भ राशि के स्वामी भी शनि है यह राशि पिण्डलियों की कारक है कुम्भ राशि लग्न में स्थित होने पर इसके कारक ग्रह गुरूशुक्र  शनि होते हैं शनि के पीड़ित या नीचस्थ होने पर  इस राशि के पीड़ित होने पर जातक पिण्डलियों,उच्च रक्तचापहर्निया  कई प्रकार की अन्य बीमारियों से ग्रसित रहता है क्योंकि ऐसाजातक खराब आदतों वाला  किसी भी प्रकार के नशे का आदि होता है जिसके परिणामस्वरूप वह कई प्रकार की व्याधियां पाल लेता है 12. मीन :मीन राशि का स्वामी देवगुरू बृहस्पति होते हैं यह राशि पैर के पंजों की कारक है लग्न में मीन राशि स्थित होने पर इसके कारक ग्रह सूर्यमंगल  गुरू होते हैं राशि स्वामी के पीडत या नीचस्थ होने पर जातक लीवरपंजोंतंत्रिका सेसंबंधी बीमारी  घुटनों संबंधी परेशानी जातक को रहती है संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि कुण्डली में रोगों का अध्ययन करते समय उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए  ग्रहों की युतिप्रकृतिदृष्टिउनका परमोच्चा या परम नीच की स्थिति कागहन अध्ययन कर ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए

No comments: