Sunday, 17 February 2019

NT24 News : 14thविंटर नेशनल थियेटर फेस्टिवल में मिंका और राहुल राय ...................


14thविंटर नेशनल थियेटर फेस्टिवल में मिंका और राहुल राय म्यूजिक वर्कशॉप में संगीत के गुर सीखाते हुए
एन टी 24 न्यूज़
विनय कुमार
चंडीगढ़
कलाप्रेमियों के लिए शहर में हो रही जमाझाम बारिश भी युवा कला के प्रति अपने समर्पण को नहीं रोक पाये   मौका था बाल भवन, सेक्टर 23 में चल रहे थिएटर फॉर थिएटर द्वारा आयोजित 14thविंटर नेशनल थियेटर फेस्टिवल में आयोजित म्यूजिक वर्कशॉप में संगीत के गुर सीखने का l वर्कशॉप में मिंका उर्फ़ चैनीज़ गिल और मशहूर रंगकर्मी व तबलावादक राहुल राय युवाओं को संगीत, तय और ताल के गुर सिखाते नज़र आये. मूल रूप से चंडीगढ़ के निवासी व उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पुरुस्कार से सम्मानित मिंका भाजीके नाम से मशहूर मिंका और पंचकुला निवासी राहुल राय जी ने वर्कशॉप में थिएटर संगीत में लय और ताल की अहमियत के बारे में बात की. शास्त्रीय संगीत की बाकायदा ट्रेनिंग दोनों ही दिग्गज कलाकारों ने युवाओं को नाटकों में इस्तमाल होने वाले संगीत, और वाद्य यंत्रों की जानकारी दी l मिंका जी ने फिल्मों और नाटकों में संगीत की अहमियत के बारे में बताते हुए कहा की शास्त्रीय संगीत का ज्ञान दोनों हो विधाओं में इस्तेमाल में आता है और इसके सही इस्तेमाल से परफॉरमेंस को एक अलग ही स्तर पर पहुँचाने में कामयाबी मिलती है. साथ ही उन्होंने बताया कि बहुत से दिग्गज रंगकर्मियों और बॉलीवुड अभिनेताओं ने शुरुआत में संगीत सीखना ही शुरू किया था जिससे उनके अभिनय में और निखार आया. दोनों कलाकारों के अनुसार गानों के हिसाब से ताल बदली जाती है इसलिए इसका ज्ञान आवश्यक है, यही ताल का ज्ञान अभिनेताओं को इस समूह के तौर पर मिल कर काम करने में सहायता करता है. मिंका जी के अनुसार रिकार्डेड संगीत की तुलना में लाईव संगीत नाटक को अलग ही ऊंचाई पर ले जाता है इसीलिए इसे पूरी शिद्दत से निभाना अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं. लाइव संगीत नाटक को अलग रूप तो देता ही है साथ में अभिनय करने वाले कलाकारों को इम्प्रोववाइज करने का ज्यादा मौका देता है जो उन्हें एक बेहतर अभिनेता बताता है l वर्कशॉप में मिंका और राहुल जी ने मौजूदा रंगकर्मियों को अलग ग्रुप्स में बांट कर उन्हें अलग अलग गाने गवा कर उनकी ताल की समझ को पक्का किया साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि सुरों पर पकड़ बनाने के लिए रिदम पर पकड़ ज़रूरी है. जब तक किसी भी कला का व्याकरण नहीं जानेंगे उसे अच्छे से नहीं समझ पाएंगे l बेसुरा भले ही चल जाएगा पर बेतला कभी नहीं चलेगा l


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